अम्मा-बाबे दी भलिआई – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
अम्मा-बाबे दी भलिआई,
ओह हुण कम्म असाडे आई| टेक|
पुत्तर दी बडिआई,
दाणे उत्तों गुत्त-बिगुत्ती,
घर-घर पई लड़ाई|
असां कज़िये ताहीं जाले,
जद कणक ऊन्हां टरकाई|
खाए ख़ैरा ते फाटिये जुम्मा,
उलटी दस्तक लाई|
बुल्ल्हा तोते मार बागां चौं कड्ढ़े,
उल्लू रहण उस जाई|
मां-बाप की शराफ़त
यह काफ़ी व्यंग्यपरक है, जिनकी मूल ध्वनि यह है कि करता कोई है और भरता कोई है| हमारे मां-बाप कितने भले थे कि उनकी भलमनसाहत हमारे काम आ रही है, यानी हमारे पूर्वज आदम और हव्वा ने जो कुछ किया, उसका फल आज सारी मानव-जाति को भुगतना पड़ रहा है| हमारे मां-बाप ने आदिमकाल में ही चोरी की, यही तो पुत्र के बड़प्पन का आधार है, यानी चोर मां-बाप का पुत्र होने में गर्व कैसा? दाने-दाने की ख़ातिर हम एक-दूसरे की चोटी नोचते हैं, जिससे घर-घर में कलह है|यानी आदम और हव्वा द्वारा गेहूं की चोरी करने का फल आज यह है कि मानव-जाति में व्यपक वैमनस्य बना हुआ है| उन्होंने गेहूं चुराया और उसके कारण मानव-जाति आज तक क्लेश में फंसी हुई है| इस स्थिति का परिणाम यह हुआ है कि गुनाह तो ख़ैरा करता है और सज़ा जुम्मा पाता है, कैसा उलटा न्याय है| बुल्लेशाह कहता है कि तोते तो बाग़ में से निकाल दिए गए हैं, अब तो उल्लू बसते हैं|