उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में वोटरशिप के अभियान को गति देने के लिए विश्वात्मा द्वारा लिखित पुस्तकों को दीपावली पर्व से उपहार के रूप में भेंट करने का संकल्प – प्रदीप कुमार सिंह
लखनऊ 27 अक्टूबर। दीपावली पर्व के अवसर पर वोटरशिप अभियान के अन्तर्गत विश्व परिवर्तन मिशन के प्रबल समर्थक श्री पी.के. सिंह, लखनऊ द्वारा श्री विश्वात्मा भरत गांधी द्वारा लिखित किताबें ‘‘संसद में वोटरशिप’’ (वोटरों को आर्थिक आजादी देने के लिए संसद में 137 संसद सदस्यों द्वारा प्रस्तुत भरत गांधी व अन्य वोटरों की याचिका), ‘‘वोटरशिप लाओ गरीबी हटाओ’ तथा ‘‘वीजा तोड़ो दुनिया जोड़ो’’ को श्री संजीव कुमार शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार, श्री डी.के. वर्मा, ब्यूरो चीफ, शौर्य टाइम्स, लखनऊ, श्री कौशल शर्मा, सब-एडीटर, दैनिक प्रभात, लखनऊ, समाजसेवी श्री ब्रज किशोर यादव, श्री राम भरोसे शर्मा तथा श्री प्रकाश दास, सिक्योरिटी गार्ड, लखनऊ को भेंट की गयी। इन लोगों ने वोटरशिप अभियान के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया। साथ ही गरीबी से मुक्ति लोक कल्याणकारी वोटरशिप अभियान को शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जन-सम्पर्क, प्रिन्ट तथा वेब मीडिया के द्वारा प्रचारित-प्रकाशित करने का विश्वास दिलाया।
श्री पी.के. सिंह ने इस अवसर पर बताया कि आज पूरे विश्व के लोग सोशल मीडिया के कारण एक-दूसरे से जुड़ गए हैं। लेकिन नागरिकता के 400 साल पुराने कानून अभी भी इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए अब जरूरी हो गया है कि नागरिकता तय करने का अधिकार लोगों को दे दिया जाए, सरकारें यह अधिकार छोड़ दें। साथ ही यह भी जरूरी हो गया है कि नई परिस्थिति में वोटरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की और वैश्विक स्तर की नागरिकता देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधि हो। वोटर को किस स्तर की नागरिकता चाहिए, यह वोटर ही तय करें। ठीक उसी तरह, जैसे वह अपना धर्म तय करता है।
आज बाजार के और अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के कारण गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद जैसी देश की अधिकांश समस्याओं का समाधान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही हो सकता है। इसलिए नागरिकता को देश के डिब्बे में बंद रखना अब खतरनाक हो गया है। यह साक्षात दिखाई दे रहा है कि जन्मजात रूप से कोई व्यक्ति जाति प्रेमी होता है, कोई दूसरा धर्म प्रेमी होता है, तीसरा क्षेत्र प्रेमी होता है, चैथा देश प्रेमी होता है और पांचवां विश्व प्रेमी होता है। यदि भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ऋग्वेद के रचयिता विश्व से प्रेम करना चाहते हैं तो उनसे एकमात्र देश से प्रेम कराना उनके साथ मानसिक बलात्कार करना है। हमारा राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रीयता वसुधैव कुटुम्बकम् तथा जय जगत की प्रबल समर्थक है।
नागरिकता के पीछे मौजूद राजनीतिक अंधविश्वासों के ऐतिहासिक कारण हंै। भारतीय संस्कृति में संपूर्ण विश्व ही राष्ट्र रहा है किंतु ब्रिटेन के शासन के दौरान राष्ट्रवाद के संकीर्ण परिभाषा का जहर भारत में फैलाया गया और आज ब्रिटेन द्वारा फैलाए गए इस जहर को कुछ लोग अमृत मान कर पी रहे हैं। खुद यूरोप, जिसने संकीर्ण राष्ट्रवाद को पैदा किया, उसको प्रचारित-प्रसारित किया, उसी ने खतरा भापकर संकीर्ण राष्ट्रवाद से अपना पिंड छुड़ा लिया और यूरोपियन यूनियन अर्थात यूरोपियन सरकार बना ली। भारत में राजनीति के क्षेत्र में ब्रिटिश राष्ट्रवाद के शिकार लोगों का दुर्भाग्यवश आम जनता को गरीबी में जीवन जीने को मजबूर किया है। वर्तमान राजनैतिक पार्टियाँ राजनीतिक सत्ता पर कब्जा बनाए रखने के लिए राजनीतिक अंधविश्वास तथा धार्मिक अज्ञानता के आवेग में देश को दंगा-फसाद और युद्ध के मुंह में झोंकने के लिए आमादा रहती हैं। भारत सरकार को समझदारी भरा निर्णय लेकर दक्षिण एशियाई सरकार का गठन शीघ्र करके वोटरशिप की धनराशि को बढ़ाकर पन्द्रह हजार रूपये प्रतिमाह प्रत्येक वोटर को देना चाहिए।
श्री सिंह ने बताया कि असम में एनआरसी की मांग करने वाले लोग आज प्रायश्चित कर रहे हैं। 40 वर्षों बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ है। एनआरसी सर्वे के दौरान असम के करोड़ों लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के नाम पर लूटा गया है। लोग अभी भी कर्जदार है। इस बेइंतहा दर्द को झेलने के बाद भी असम के लोगों को कुछ हासिल नहीं हुआ। कोई बांग्लादेश वापस नहीं जाएगा। फिर यह कवायद क्यों की गई थी?
श्री सिंह ने अन्त बताया कि राजनीतिक सुधारों पर दर्जनों पुस्तकों के लेखक श्री विश्वात्मा वोटरशिप विचार के जन्मदाता के रूप में देश भर में जाने जाते हैं। असम मैं एनआरसी की परिघटना यह साबित करती है कि संकीर्ण राष्ट्रवादी राजनीतिक मर्म को समझने में नाकाम होते हैं और वह समाज की गाड़ी के नादान ड्राइवर हैं। भविष्य में ऐसे नादान लोगों के हाथ में सत्ता सौंपने से रोक लगानी होगी। एनआरसी सर्वे के नाम पर असम के लोगों को जो प्रताड़ना झेलनी पड़ी है, उसके बदले उनको क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिए और यह क्षतिपूर्ति ब्रिटिश राष्ट्रवादियों पर टैक्स लगाकर की जानी चाहिए। यह रकम सरकारी खजाने पर भारित नहीं होनी चाहिए, जिससे समाज के साथ खिलवाड़ करने से भविष्य में लोगों को भय पैदा हो।
-प्रदीप कुमार सिंह, लेखक
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