Homeआध्यात्मिक न्यूज़हमें वैश्विक संचार माध्यमों का अधिकतम उपयोग रचनात्मक कार्यों के लिए करके विश्व की एक न्यायपूर्ण व्यवस्था का गठन करना चाहिए! – प्रदीप कुमार सिंह

हमें वैश्विक संचार माध्यमों का अधिकतम उपयोग रचनात्मक कार्यों के लिए करके विश्व की एक न्यायपूर्ण व्यवस्था का गठन करना चाहिए! – प्रदीप कुमार सिंह

हमें वैश्विक संचार माध्यमों का अधिकतम उपयोग रचनात्मक कार्यों के लिए करके विश्व की एक न्यायपूर्ण व्यवस्था का गठन करना चाहिए! - प्रदीप कुमार सिंह

अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट दिवस वर्ष 1969 में इलेक्ट्राॅनिक संदेश भेजने के लिए इंटरनेट के सर्वप्रथम उपयोग की वर्षगांठ के अवसर पर 29 अक्टूबर को विश्व स्तर पर मनाया गया था। वर्ष 2005 से इसे दूरसंचार और प्रौद्योगिकी के इतिहास में महत्वपूर्ण दिवस की याद में प्रतिवर्ष वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है। इंटरनेट की शुरूआत वर्ष 1969 में हुई थी जब अमरीका में सेना के लिए एक कंप्यूटर नेटवर्क तैयार किया गया था ताकि परमाणु युद्ध शुरू होने की स्थिति में सूचना का आदान-प्रदान किया जा सके। इसके माध्यम से हर कोई इस सुविधा का समान लाभ प्राप्त कर सकता है, जो दुनिया में लोगों को आपस में जोड़ती है। साथ ही सेटेलाइट्स ने विज्ञान के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है।

भारत का सुप्रीम कोर्ट सोशल मीडिया के दुरूपयोग को रोकने के लिए सभी याचिकाओं की सुनवाई स्वयं करेगा। इस सन्दर्भ में भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि उसकी ओर से अगले तीन माह मंे सोशल मीडिया संबंधी नियम तैयार कर लिए जाएंगे। पूरी दुनिया के लिए सोशल मीडिया का दुरूपयोग एक गंभीर समस्या बन गया है। क्योंकि सोशल मीडिया कंपनियां अपने प्लेटफार्म का दुरूपयोग रोकने के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं कर रही हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मर्यादाओं को लांघ कर सोशल मीडिया का दुरूपयोग सभ्य समाज के समक्ष गंभीर संकट पैदा कर रहा है।

विश्व को यह बात स्मरण करनी चाहिए कि कैब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी ने फेसबुक का डाटा चोरी कर कई देशांे के चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की थी? फेसबुक ने अपनी सफाई में मिथ्या जानकारी देकर लोगों को भरमाने की कोशिश की है। सोशल मीडिया को आधार से लिंक करने की बात सरकार ने अदालत से कहीं है। टेक्नोलाॅजी ने आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है लेकिन यह भी सच है कि इसके चलते घृणा फैलाने, फेक न्यूज और समाज
विरोधी गतिविधियों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है।

इण्टरनेट के तेजी से बढ़ते उपयोग से जहाँ एक ओर सारे विश्व में एकता, मित्रता, विकास, उत्साह, उल्लास तथा ऊर्जा का संचार हो रहा है! तो वही दूसरी तरफ इण्टरनेट के दुरूपयोग से युवा पीढ़ी कुछ विकारों से ग्रसित हो रही है। विज्ञान की इस अनमोल देन का दुरूपयोग मानव जाति के विनाश के लिए आतंकवादी संगठन करने में लगे है। हमारा मानना है कि हमें विज्ञान एवं आध्यात्म को मिलकर चलना होगा। तभी हम विज्ञान की इस अनमोल देन का पूरा-पूरा सदुपयोग मानव जाति की भलाई के लिए कर सकेंगे।

इंटरनेट ने विश्व में जैसा क्रांतिकारी परिवर्तन किया, वैसा किसी भी दूसरे तकनीक ने नहीं किया। इंटरनेट दूर बैठे उपभोक्ताओं के मध्य संवाद का तेज तथा सस्ता माध्यम है। यह किसी भी सूचना को विश्व स्तर पर प्रकाशित करने का जरिया है। इंटरनेट सूचना का अपार सागर है। आज अरबों लोग विभिन्न कार्यों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। आज दुनिया के अधिकतर हिस्सों में इंटरनेट से जुड़ना संभव है। इंटरनेट द्वारा हम विश्व के किसी भी देश में किसी कंपनी, संस्था या व्यक्ति से तुरंत संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

ई-मेल या इलेक्ट्राॅनिक मेल अभी तक का सबसे लोकप्रिय उपयोग है, जिसने संचार के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। अन्य माध्यमों की तुलना में सस्ता, तेज रफ्तार और अधिक सुविधाजनक होने के कारण ई-मेल ने दुनिया भर के कार्यालयों और घरों में अपनी जगह बना ली है। सारे विश्व में आज विज्ञान, अर्थ व्यवस्था, प्रशासन, न्यायिक, मीडिया, राजनीति, अन्तरिक्ष, खेल, उद्योग, प्रबन्धन, कृषि, भूगर्भ विज्ञान, समाज सेवा, आध्यात्म, शिक्षा, चिकित्सा, तकनीकी, बैंकिग, सुरक्षा आदि सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों का बड़े ही बेहतर तथा योजनाबद्ध ढंग से विकास हो रहा है।

नई पीढ़ी में इंटरनेट चैंट या चर्चा व्यापक रूप से लोकप्रिय है। यह एक बहुपयोगी गतिविधि है, जिसके द्वारा भौगोलिक रूप से दूर-दराज स्थानों पर बैठे व्यक्ति एक ही चैट सर्वर पर लाॅग करके ‘की-बोर्ड’ के जरिये एक-दूसरे से चर्चा कर सकते हैं। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों ने तो दुनिया में धूम ही मचा दी है। आर्थिक गतिविधियों को संचालित करने में नेट की बढ़ती लोकप्रियता का एक प्रमाण सैकड़ों की संख्या में डाॅट काॅम, डाॅट ओर्ग, डाॅट इंफो इत्यादि कम्पनियों का उदय हैं। ई-मीडिया में इंटरनेट पर शिक्षा के साथ मनोरंजन को जोड़कर शिक्षारंजन प्रदान किया जाता है। आज अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं के आवेदन-पत्र से लेकर रिजल्ट तक की सभी जानकारी इंटरनेट पर ही आॅन लाइन उपलब्ध होती हंै।

रेल-यातायात, विमान-यातायात, सड़क यातायात के टिकट से लेकर बैंकिंग सुविधाओं तक आज सभी कुछ इंटरनेट के माध्यम से ही संपन्न हो रहा है। संक्षेप में, इंटरनेट ने मानव के कार्यो को अद्भुत गति प्रदान की है। भविष्य में, इंटरनेट आज के आधार पर कही अधिक प्रगतिशाली सेवायें प्रदान करने वाला होगा। सभी विषयों के इनसाइक्लोपीडिया, सभी देशों के मानचित्र, संस्कृति, इतिहास, साहित्य और जो कुछ भी हम जानना चाहते हैं, उसके बारे में तमाम सूचना इंटरनेट के जरिये उपलब्ध है। सूचना तथा तकनीकी विकास ने
वसुधा को ग्लोबल विलेज का स्वरूप प्रदान किया है। गुफाओं से शुरू हुई मानव सभ्यता की विकास यात्रा का अगला कदम तथा अन्तिम लक्ष्य विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाकर जय जगत के विचार साकार करना है। अब ग्लोबल विलेज से हमारी संस्कृति के आदर्श वसुधा को कुटुम्ब बनाने का समय आ गया है।

आज जहाँ एक ओर मनुष्य प्रकृति, संसाधनों तथा विज्ञान का मानव जाति की भलाई के लिए उपयोग करके विश्व विकास की चरम ऊँचाइयों को छू रहा है। वही दूसरी ओर मनुष्य ने प्रकृति, संसाधनों तथा विज्ञान का अविवेकी ढंग से दुरूपयोग करके मानव जाति को विनाश की कगार पर भी ला खड़ा किया है। धरती पर पलने वाले मानव जीवन सहित समस्त जीवों के ऊपर अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, तृतीय विश्व की आशंका, परमाणु शस्त्र बनाने की होड़, ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन परत का क्षरण, प्रौद्योगिकी का दुरूपयोग, तेल संकट, अत्यधिक जनसंख्या, सुपरवोल्केनो, उल्का प्रभाव, हिम युग, वृहत सुनामी, आकाल, भूकंप, मरुस्थलीकरण, प्रकृति का अनियंत्रित तथा अत्यधिक उपभोग, सूखा, बाढ़, जल संकट, वनों की कटाई आदि का सदैव संकट मंडराता रहता है। 6 तथा 9 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा तथा नाकाशाकी शहरों परमाणु बमों का विस्फोट किये थे। इन दोनों परमाणु बमों का हिरोशिमा एवं नागासाकी नगर तथा इन दोनों शहरों में रहने वाले लोगों के विनाश से मानवता कराह उठी थी। आगे इस तरह का विनाश न हो इसके समाधान के लिए शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को हुई थी।

सारे ब्रह्याण्ड का ज्ञान-विज्ञान, सृजन, कला-साहित्य, संगीत, प्रकृति बोध, आनन्द, प्रसन्नता, आरोग्य, ओज, तेज, आभा, प्रकाश आदि सब कुछ मनुष्य के अन्दर है। मनुष्य को ही विश्व को विकास की ओर ले जाने का श्रेय जाता है तथा मनुष्य ही विश्व को विनाश की ओर ले जाने के लिए भी जिम्मेदार है। हमारा यह भी मानना है वोटरशिप अधिकार कानून के द्वारा धरती के प्रत्येक वोटर को आर्थिक आजादी दिलाना हमारे जीवन का परम उद्देश्य होना चाहिए। वोटरशिप इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। हमारे जीवन का मंत्र होना चाहिए कि वोटरशिप हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। सूचना क्रान्ति के इस युग में प्रत्येक वोटर को वोटरशिप अधिकार के प्रति जागरूक करना शिक्षा केन्द्रों, मीडिया तथा समाज की भूमिका पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गयी है। विश्व के दो अरब पचास करोड़ से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय के गठन के विश्व परिवर्तन मिशन के अभियान में शिक्षा केन्द्रों, मीडिया तथा समाज की सक्रिय भूमिका निभाने के लिए मानव जाति सदैव ऋणी रहेगी।

संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव डा0 कोफी अन्नान ने कहा था कि ‘‘मानव इतिहास में 20वीं सदी सबसे खूनी तथा हिंसा की सदी रही है।’’ 20वीं सदी में विश्व भर में दो महायुद्धों तथा अनेक युद्धों की विनाश लीला का ये सब तण्डाव संकुचित राष्ट्रीयता के कारण हुआ है, जिसके लिए सबसे अधिक दोषी हमारी शिक्षा है। विश्व के सभी देशों के स्कूल अपने-अपने देश के बच्चों को अपने देश से प्रेम करने की शिक्षा तो देते हैं लेकिन शिक्षा के द्वारा सारे विश्व से प्रेम करना नहीं सिखाते हैं। यदि विश्व सुरक्षित रहेगा तभी देश सुरक्षित रहेंगे। विश्व के बदलते हुए परिदृश्य को देखने से ज्ञात होता है कि 21वीं सदी की शिक्षा का स्वरूप 20वीं सदी की शिक्षा से भिन्न होना चाहिए। 21वीं सदी की शिक्षा उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए जिससे सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित हो। इसलिए 21वीं सदी की शिक्षा को प्रत्येक बालक का दृष्टिकोण संकुचित राष्ट्रीयता से विकसित करके विश्वव्यापी बनाना चाहिए।

आज पूरे विश्व के लोग सोशल मीडिया के कारण एक-दूसरे से जुड़ गए हैं। लेकिन नागरिकता के 400 साल पुराने कानून अभी भी इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए अब जरूरी हो गया है कि नागरिकता तय करने का अधिकार लोगों को दे दिया जाए, सरकारें यह अधिकार छोड़ दें। साथ ही यह भी जरूरी हो गया है कि नई परिस्थिति में वोटरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की और वैश्विक स्तर की नागरिकता देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधि हो। वोटर को किस स्तर की नागरिकता चाहिए, यह वोटर ही तय करें। ठीक उसी तरह, जैसे वह अपना धर्म तय करता है।

आज बाजार के और अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के कारण गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद जैसी देश की अधिकांश समस्याओं का समाधान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही हो सकता है। इसलिए नागरिकता को देश के डिब्बे में बंद रखना अब खतरनाक हो गया है। यह साक्षात दिखाई दे रहा है कि जन्मजात रूप से कोई व्यक्ति जाति प्रेमी होता है, कोई दूसरा धर्म प्रेमी होता है, तीसरा क्षेत्र प्रेमी होता है, चैथा देश प्रेमी होता है और पांचवां विश्व प्रेमी होता है। यदि भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ऋग्वेद के रचयिता विश्व से प्रेम करना चाहते हैं तो उनसे एकमात्र देश से प्रेम कराना उनके साथ मानसिक बलात्कार करना है। हमारा राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रीयता वसुधैव कुटुम्बकम् तथा जय जगत की प्रबल समर्थक है।

भारतीय संस्कृति में संपूर्ण विश्व ही राष्ट्र रहा है किंतु ब्रिटेन के शासन के दौरान राष्ट्रवाद के संकीर्ण परिभाषा का जहर भारत में फैलाया गया और आज ब्रिटेन द्वारा फैलाए गए इस जहर को कुछ लोग अमृत मान कर पी रहे हैं। खुद यूरोप, जिसने संकीर्ण राष्ट्रवाद को पैदा किया, उसको प्रचारित-प्रसारित किया, उसी ने खतरा भापकर संकीर्ण राष्ट्रवाद से अपना पिंड छुड़ा लिया और यूरोपियन यूनियन अर्थात यूरोपियन सरकार बना ली। भारत सरकार को समझदारी भरा निर्णय लेकर दक्षिण एशियाई सरकार का गठन शीघ्र करके वोटरशिप की धनराशि को बढ़ाकर पन्द्रह हजार रूपये प्रतिमाह प्रत्येक वोटर को देना चाहिए।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास ने सारे विश्व को एक ग्लोबल विलेज का स्वरूप प्रदान कर दिया है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग प्रत्येक वोटर को वोटरशिप के द्वारा आर्थिक आजादी दिलाने के लिए करना है। स्वर्ग किसी अन्य लोक में नहीं है वरन् धरती पर ही स्वर्ग का अवतरण किया जा सकता है। 21वीं सदी में वोटरशिप के द्वारा आर्थिक आजादी के साथ प्रत्येक परिवार का उज्जवल भविष्य युगों-युगों के लिए सुरक्षित तथा सुनिश्चित होगा।

 

-प्रदीप कुमार सिंह, लेखक

पता- बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2
एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ-226025
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