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चारो दिशाओं में स्थापित है, ये चार मठ

चारो दिशाओं में स्थापित है, ये चार मठ

प्राचीन भारतीय सनातन परम्परा के विकास और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है।उन्होंने भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठों की स्थापना की थी। ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परम्परा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं।

हिंदू धर्म में मठों की परंपरा लाने का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है। आदि शंकराचार्य ने देश की चारों दिशाओं में चार मठ की स्थापना की थी। आइए जानते हैं आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित इन मठों के बारे में।

श्रृंगेरी मठ: श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है। श्रृंगेरी मठ कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक है। इसके अलावा कर्नाटक में रामचन्द्रपुर मठ भी प्रसिद्ध है। इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती, पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है, मठ के तहत ‘यजुर्वेद’ को रखा गया है। इसके पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वर थे।

गोवर्धन मठ: गोवर्धन मठ उड़ीसा के पुरी में है। गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है। बिहार से लेकर राजमुंद्री तक और उड़ीसा से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक का भाग इस मठ के अंतर्गत आता है। गोवर्द्धन मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘आरण्य’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य है ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’ और इस मठ के तहत ‘ऋग्वेद’ को रखा गया है। इस मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के पहले शिष्य पद्मपाद हुए।

शारदा मठ: द्वारका मठ को शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है। यह मठ गुजरात में द्वारकाधाम में है। इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य है ‘तत्त्वमसि’ और इसमें ‘सामवेद’ को रखा गया है। शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे। हस्तामलक आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे।

ज्योतिर्मठ: ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है। ऐतिहासिक तौर पर, ज्योतिर्मठ सदियों से वैदिक शिक्षा तथा ज्ञान का एक ऐसा केन्द्र रहा है जिसकी स्थापना 8वीं सदी में आदी शंकराचार्य ने की थी। ज्योतिर्मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ और ‘सागर’ चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य ने स्थापित किए थे ये 4 मठसम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इसका महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म’ है। मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है। इसके पहले मठाधीश आचार्य तोटक थे।

 

तेजस्वनी पटेल, पत्रकार (+91 9340619119)

– तेजस्वनी पटेल, पत्रकार
(+91 9340619119)

 

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