फैसला
कई वर्ष पहले, एक घने जंगल में चार चोर रहते थे| चुराया हुआ धन वे एक साधारण से बर्तन में रखते थे लेकिन उसकी हिफाजत जान से भी ज्यादा करते थे| कुछ अरसे बाद उनका मन चोरी-चकारी से उब गया|
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“मै तो ऐसी जिंदगी से तंग आ गया हूं| हमें हमेशा चौकन्ना रहना पड़ता है, वरना हम पकड़े भी जा सकते हैं|” एक ने अपना दुखड़ा रोया|
“हां, मै भी चाहता हूं कि लोग एक शांत-सच्ची जिंदगी जिए!” दूसरे चोर ने हां में हां मिलाई|
“बहुत अच्छा! हम जंगल छोड़कर किसी ऐसे शहर चलते हैं, जहां हमें कोई जानता न हो| शायद कोई साफ-सुथरा कम धंधा ही हाथ लग जाए,” तीसरा बोला|
तीन चोरों को तो यह सुझाव पसंद आया और उन्होंने तय किया कर लिया कि वे जंगल छोड़ देंगे| लेकिन चौथे चोर को अपनी जीविका के लिए कोई खरा धंधा करने करने की योजना पसंद नहीं आई|
उस समय तो चुप रहा लेकिन उसने बर्तन में रखे पैसे चुराकर भाग जाने का इरादा कर लिया| वह सही मौके का इंतजार करने लगा|
चारों चोर एक शहर पहुंचे और वहां एक धर्मशाला “छ्त्रम” में रुक गए| उनमें से दो शहर के बारे कुछ जानकारी हासिल करने निकल पड़े|
जल्दी ही उन्होंने एक वृद्ध औरत का घर देखा, जो आरामदेह तो लगता ही था, उनके लिए ठीक भी था| दोनों ने छ्त्रम लौटकर अपने साथियों से वृद्धा के घर का जिक्र किया| वे भी सहमत हो गए और चारों चोर उस घर के लिए निकल पड़े|
“हम चारों व्यापारी हैं,” एक चोर बोला, “और इस शहर में कुछ काम-धंधा शुरू करना चाहता हैं| हमें आपका घर पसंद आया और इसके कुछ कमरे किराए पर लेना चाहते हैं|”
” हम जब तक यहां रहेंगे, आपको अच्छा किराया देते रहेंगे,” दूसरा बोला| बुढ़िया बहुत खुश थी और उसने अपने मेहमानों की खूब खातिरदारी की| “आप यहां जब तक चाहे रह सकते हैं,” वह मुस्कराई| वह प्रसन्न हुई कि उसे अच्छे किरायेदार मिल गये है|
चारों चोर पता लगा चुके थे कि वह बहुत नेक और सच्ची औरत है, जिसे पराई दौलत का लालच नहीं हैं| इसलिए उन्होंने अपना पैसों से भरा बर्तन बुढ़िया को संभालने के लिए दे दिया|
“कृपया इस बर्तन को ध्यान से रखिएगा| एक ही शर्त है: इसे देना तभी जब हम चारों साथ मांगने के लिए आएं|”
“ठीक है! बुढ़िया ने बर्तन लेते हुए कहा|
वह अपने घर के पिछवाड़े गई और देखने लगी कि कोई देख तो नहीं रहा| जब उसे तसल्ली हो गई तो उसने जमीन खोदकर उसमें बर्तन डाला और उसे वापस मिट्टी से ढक दिया|
चारों चोर कुछ काम-धंधे की तलाश में शहर चले गए|जल्दी ही वे काफी थक गए और बुढ़िया के घर से कुछ ही दूरी पर खड़े वटवृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे|
तभी एक औरत लस्सी बेचती हुई वहां से निकली| चोरों ने थोड़ी लस्सी खरीदने का निश्चय किया| लस्सी बहुत स्वादिष्ट थी| उन्होंने सोचा कि दोपहर के भोजन के साथ पीने के लिए थोड़ी लस्सी भी ले ली जाए|
पर तीन चोर तो बहुत थक गये थे| लस्सी डालने के लिए बुढ़िया के घर से बर्तन लाने की हिम्मत किसी में नहीं थी| चौथा चोर, जो किसी ऐसी ही घड़ी की प्रतीक्षा में था, झट से जाने के लिए तैयार हो गया|
वह बुढ़िया के घर पहुंचकर बोला, “मुझे मेरे साथियों ने बर्तन लाने के लिए भेजा है|”
“लेकिन मै तो बर्तन यह तभी दूंगी, जब तुम चारों इकट्ठे आओगे,” वह मना करती हुई बोली|
उस चोर के दिमाग में एक विचार आया|
“मेरे साथी यहां से कुछ ही दूर केले के पेड़ तले बैठे हैं| आप खुद ही पूछ लें,” उसने राय दी|
बुढ़िया घर से बाहर निकली| उसने तीनों को पेड़ के नीचे बैठे हुए देखा| “क्या आपने अपने दोस्त को बर्तन लाने के लिए भेजा है?” वह चिल्लाई|
“जी! कृपया उसे दे दीजिये! तीनों ने जवाब दिया|
बुढ़िया ने सोचा कि उन्हें अपना बर्तन किसी कार्य हेतु चाहिए होगा, जो उन्होंने अपना विश्वसनीय साथी भेजा है| उस चोर को फावड़ा देती हुई वह बोली कि पिछवाड़े से खोदकर बर्तन निकाल ले| इतना कहकर वह अपने घर के कामों में उलझ गई|
चोर ने बर्तन निकाला और चुपके-से पिछले दरवाजे से भाग खड़ा हुआ| इस बीच उसके दोस्त चिंतित हो रहे थे| काफी वक्त बीत चूका था और उनके साथी का कुछ पता नहीं था| तीनों बुढ़िया के घर गए|
“हमने अपना साथी एक बर्तन लाने भेजा था| वह कहां है?” उन्होंने पूछा|
“मैंने तो बहुत पहले ही उसे बर्तन खोदने के लिए कुदाली दी थी| उसने आपको बर्तन नहीं दिया? बुढ़िया हैरान थी|
तीनों चोर समझ गए कि उनके साथी ने उन्हें धोखा दिया है|
“हमने आपको कहा था कि बर्तन तभी देना जब हम चारों आपके पास आएं| आपने हमारी बात नहीं मानी| हमें लगता है कि हमारे साथी ने आपके साथ मिलकर हमारा पैसा हथियाने का षडयंत्र रचा है!” वे बोले|
बुढ़िया बहुत दुखी हुई|
वे तीन उसे शहर के न्यायाधीश के पास ले गये और उसकी शिकायत की|
न्यायाधीश ने फैसला दिया कि बुढ़िया की लापरवाही की वजह से तीनों को नुकसान हुआ है, इसलिए सारा हर्जाना बुढ़िया को ही भरना होगा| बुढ़िया रोती हुई घर लौट आई|
इस बीच राजा और उसका मन्त्री वेश बदलकर अपनी प्रजा की परेशानियां जानने शहर के दौरे पर थे| इस बात का किसी को पता भी नहीं था| बुढ़िया को देखकर वे रुक गये और उसके रोने का कारण पूछने लगे|
उसी समय आसपास ही कुछ लड़के खेल रहे थे और उनका अगुआ था रामन| बुढ़िया की दुखभरी कहानी उसने भी सुनी|
“भगवान करे, उन तीनों को तुम्हारे साथ ऐसा सुलूक करने की सजा मिले” रामन बोला|
यह सुनकर राजा और उसका मन्त्री हैरान हुए| उन्होंने रामन से पूछा कि क्या वह इस मामले का फैसला कर सकता है?
रामन ने आत्मविश्वास के साथ सिर हिलाया और कहा कि वह अपना फैसला राजा के दरबार में ही सुनाएगा|
अगले दिन महल में दरबार लगा| रामन न्यायाधीश के आसन पर बैठा था| उसने चोरों की कहानी सुनी|
“तुम्हारी शर्त यही थी न कि बुढ़िया वह बर्तन तुम्हें तभी दे, जब तुम चारो उसे लेने आओ?” रामन के प्रश्न पर तीनों ने हामी भर दी|
“बहुत अच्छा! वह शर्त पूरी करने के लिए तैयार है| पर यहां तो तुम सिर्फ तीन हो| जाओ, अपना चौथा साथी लेकर आओ जिससे शर्त पूरी की जा सके! रामन ने आदेश दिया|
“शाबाश! क्या फैसला दिया है! राजा ने रामन की भूरि-भूरि प्रशंसा की|
“तुम छोटे हो, पर हो समझदार! आज से तुम ‘मर्यादा रामन’ के नाम से जाने जाओगे और हमारे दरबार में ऐसे मुकदमों के फैसले किया करोगे|”