सियार और बकरी
हिमालय की तराई में बकरियों का एक समूह चरने आया करता था| एक दिन भोजन के लिए यहाँ-वहाँ भटकते हुए एक सियार और सियारिन ने बकरे-बकरियों के समूह को घास चरते हुए देखा|
सियार ने कहा, ‘आओ! इनमें से एक का शिकार करते है|’
सियारिन ने कहा, ‘ठहरो! यदि सूझ-बूझ से काम ले तो महीनों तक के भोजन का इंतजाम हो सकता है|’
अपनी योजना के अनुसार उन्होंने बकरियों को इधर-उधर बिखर जाने दिया| फिर जैसे ही एक बकरा समूह से बिछड़ा तो सियार ने उसे मार डाला तथा सियारिन से बोला, ‘मैंने इसे मार डाला है| अब इसे गुफ़ा तक ले जाने में मेरी मदद करो|’
इसी तरह दिन बीतने लगे और एक-एक करके बकरे-बकरियाँ सियार जोड़े के पेट में जाते रहे|
अंत में केवल एक बुद्धिमान बकरी ही बची| वह सोचने लगी कि बाहर कैसे जाया जाए, वहाँ तो सियार घूम रहे होंगे|
जब बकरी नही आई तो सियारिन बोली, ‘लगता है वह हमसे सतर्क हो गई है|
अचानक सियार को एक तरकीब सूझी| उसने सियारिन से कहा, ‘तुम उस बकरी को किसी तरह अपने विशवास में ले लो| मैं बेजान होने का स्वांग कर यहाँ पड़ा रहूँगा|’
सियारिन बकरी के पास पहुँची और बोली, ‘क्या तुम यहाँ बिल्कुल अकेली हो?’
‘ओह! यह तो सियार की पत्नी है|’ बकरी ने सोचा|
‘डरो नही, मैं तुम्हें दोस्त बनाना चाहती हूँ, मेरे पास आओ, हम सब मिल-जुलकर रहेंगे|’ सियारिन चापलूसी भरे स्वर में बोली|
‘नही, तुम पर मुझे भरोसा नही है| यहाँ से चलती बनो| तुमने मेरे सभी साथियों को मार डाला|’ बकरी ने दूर से ही जवाब दिया|
‘बहन! वह तो मेरे पति की करतूत थी| तुम्हें मुझ पर भरोसा नही है तो कोई बात नही, पर मुझसे बात करने से तो इंकार मत करो| सियारिन ने मधुर स्वर में कहा|
‘बात करने में क्या बिगड़ता है| हो सकता है यह बेचारी निर्दोष हो|’ बकरी ने अपने मन में सोचा|
‘बहन, मैं बहुत आभागिन हूँ| मेरे पति की करतूतों को देखकर कोई भी मुझसे दोस्ती नही करता|’ सियारिन ने आँसू बहाते हुए कहा|
बकरी को उस पर दया आ गई| वह बोली, ‘बहन, मैं बनूँगी तुम्हारी दोस्त|’
इस प्रकार जैसे-जैसे दिन गुज़रते गए वैसे-वैसे उनकी दोस्ती बढ़ती गई| फिर एक दिन सियारिन ने रोते हुए कहा, ‘हाय! मेरे पति नही रहे| उनके अंतिम संस्कार में तुम मेरी सहायता करो|’
‘नही-नही| मैं नही आ सकती| मुझे सियार से बहुत डर लगता है|’ बकरी भयभीत होती हुई बोली|
‘किंतु वे तो मर चुके है|’ सियारिन ने झूठ बोला|
‘जिंदा हो या मुर्दा, वह बहुत क्रूर है| इसलिए मेरी तुम्हारे पास आने की भी हिम्मत नही होती थी|’
बकरी ने कहा|
‘मैंने तो सोचा था की तुम मेरी सहेली हो| हाय! मैं कैसी अभागी हूँ कि अपने पति का दाह-संस्कार भी मुझे अकेला ही करना पड़ेगा|’ कहने के साथ ही सियारिन ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगी|
‘यह इतना बड़ा झूठ नही बोल सकती| लगता है सियार सचमुच ही मर गया है|’ बकरी ने मन-ही-मन सोचा और फिर बोली, ‘रोओ मत, बहन| मैं तुम्हारे साथ अवश्य चलूँगी|’ इतना कहकर वह उसके करीब आ गई| परंतु जैसे ही वह चलने लगी तो बकरी को शक हुआ| उसने कहा, ‘तुम आगे चलकर रास्ता दिखाओ| मैं पीछे-पीछे आऊँगी|’
पैरों की आहट सुनकर सियार ने आँखें खोली| वह भूल गया था कि उसे तो मरने का ढोंग करना था| तंदुरुस्त बकरी को देखकर उसके मुँह में पानी भर आया|
लेकिन बकरी ने दूर से ही भाँप लिया, ‘ओह! तो यह दोनों ही धोखेबाज़ हैं|’ यह कहकर बकरी फुर्ती से भाग खड़ी हुई|
जब बकरी भाग गई तो सियार ने सियारिन से कहा, ‘धत्! मैंने तो सोचा था कि तुमने उसको विश्वास में ले लिया होगा|’
‘हाँ, मैंने वैसे ही किया था, पर आपकी जल्दबाजी ने मेरे किए-कराए पर पानी फेर दिया|’
उसे उदास देखकर सियारिन ने कहा, ‘स्वामी आप निराश न हों, मैं किसी तरह फिर उसे यहाँ तक लाऊँगी| इस बार तुम पूरी तरह होशियार रहना|’
इतना कहने के बाद सियारिन उधर चल दी, जिधर बकरी चर रही थी| वह उससे बोली, ‘बहन! तुमने तो चमत्कार कर दिया| जैसे ही तुम मेरे पति के पास पहुँची, वह फिर से जीवित हो गए| वह तुम्हें धन्यवाद देना चाहते है|’
‘धोखेबाज़! मुझे निरा मुर्ख समझती है| मैं भी ऐसा पाठ पढ़ाऊँगी कि सारी जिंदगी याद रखेगी|’ बकरी ने मन-ही-मन सोचा और प्रत्यक्षतः बोली, ‘ठीक है| मैं आऊँगी, पर सैकड़ों कुतों के साथ| अगर उन्हें भरपेट भोजन न मिला तो वे तुम्हें और तुम्हारे पति दोनों को खा जाएँगे| इसलिए फौरन हम सबके खाने का प्रबंध करो|’
‘लगता है बात बन गई…पर सैकड़ों कुत्ते! बकरी है कि बला|’ बकरी से स्वयं को खतरा महसूस करके वह बोली, ‘मैंने अपना विचार स्थगित कर दिया है| अभी तुम्हारा आना ठीक नही है|’
लेकिन बकरी ने चलने की जिद्द पकड़ ली|
‘नही, फिर कभी आना|’ और इतना कहने के बाद सियारिन भाग खड़ी हुई और अपने पति के पास जा पहुँची|
‘स्वामी, यहाँ से जल्दी भाग चलो वरना हम सैकड़ों कुत्तों का निवाला बन जाएँगे|’ सियारिन बदहवास होकर बोली|
‘सैकड़ों कुत्ते!’ सियार ने सुना तो उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई|
उसके बाद सियार और सियारिन ऐसे भागे जैसे उनके पीछे सैकड़ों भूत पड़े हों|
शिक्षा: धूर्त व कुटिल प्राणी अपना स्वभाव नही बदल पाता, ठीक उसी तरह जैसे बिच्छू डंक मारना नही छोड़ता| ऐसे प्राणी दूसरों को मुर्ख बनाकर अपना हित साधना चाहते है, लेकिन बुद्धि से काम लिया जाए तो मुसीबत पास नही फटकती|