गरीब की हाय
दिल्ली का एक बादशाह था| जनता के सुख-दुःख का वह सदा ख्याल रखता था| प्रजा के सुख-दुःख का ख्याल रखने के कारण ही उसे एक दिन अधिक रात बीतने पर भी नींद नहीं आई|
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वह राज्य की उन्नति के लिए बेचैन होकर घूमने लगा| उसकी नजर अचानक अपने शाही खजाने की ओर गई| खजाने की इमारत से रोशनी आ रही थी| उसने पहरेदार को आवाज़ लगाई पूछा- “खजाने में रोशनी क्यों है?”
पहरेदारों ने खजाने की इमारत में जाकर पता लगाया तो मालूम हुआ कि खजांची साहब कुछ हिसाब-किताब कर रहे हैं| बादशाह स्वयं खजाने में पहुँच गए| वहाँ जाकर पूछा- “खजांची जी| यह क्या कर रहे हो?” खजांची ने जवाब दिया- “कुछ हिसाब लगा रहा हूँ|” बादशाह ने कहा-“ इस आधी रात को हिसाब लगाने की क्या जरुरत है? हिसाब में क्या कुछ बढ़ा है या कुछ घट गया है?”
खजांची ने जवाब दिया- “हिसाब कुछ बढ़ गया है|” बादशाह ने कहा- “हिसाब में कुछ बढ़ गया है तो चिंता क्यों करते हो? कल दिन में आकर देख लेना कि हिसाब क्यों बढ़ गया है|” खजांची ने जवाब दिया- “हुजूर, ऐसा नहीं हो सकता| पता नहीं, किस गरीब का गलत पैसा हमारे खजाने में आ गया है| ऐसा न हो कि उसकी हाय हमारे खजाने में आग लगा दे| उसके पहले ही मेरी कोशिश है कि उसका पैसा अलग निकालकर अलग जमा कर दे| हुजूर, मेरी कोशिश है कि शाही खजाने में एक पैसा भी गलत ढंग से जमा न किया जाए|”
बादशाह अपने खजांची का कर्तव्य परायणता से खुश होकर सोने चले गए|
इसी तरह प्रत्येक मनुष्य को कर्तव्य परायणता का पालन करना चाहिए|