तूहिओं हैं मैं नाहीं वे सजणा – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
तूहिओं हैं मैं नाहीं वे सजणा,
तूहिओं हैं मैं नाहीं| टेक|
खोले दे परछावें वांगूं,
घूम रिहा मन माहीं|
जे बोलां तूं नाले बोलें,
चुप रह्वां मन माहीं|
जै सौवां तूं नाले सौवें,
जे तुरां तू राहीं|
बुल्लिहा शौह घर आया मेरे,
जिंदड़ी घोल घुमाईं|
तुम ही हो मैं नहीं हूं
अध्यात्म की उच्च अवस्था में जब साधक का अहं मिट जाता है, तो उसे सर्वत्र प्रभु ही दिखते हैं| आपा नष्ट होने की अवस्था में वह पुकारकर कहता है कि प्रिय, सभी कहीं तुम ही तुम हो| मैं नहीं हूं| तुम मेरे मन में इस प्रकार घूम रहे हो, जैसे किसी खंहडर में परछाईं घुमती है|
तदाकारिता की स्थिति यह है कि यदि मैं बोलती हूं, तो तुम मेरे साथ बोलते हो, मैं चाहूं तो भी मन के भीतर चुप नहीं रह सकती| जब में सो जाती हूं, तो तुम मेरे साथ ही सोते हो, जब मैं चलती हूं तब भी तुम ही राह में मेरे साथ होते हो|
बुल्लेशाह कहता है कि पति-परमेश्वर मेरे घर आया हुआ है और मैंने तन-मन-प्राण सब-कुछ उस पर न्यौछावर कर दिया|