Homeशिक्षाप्रद कथाएँबिना सेवा में विद्या नहीं

बिना सेवा में विद्या नहीं

एक फकीर था | वह जंगल में घास-फूस की कुटिया बनाकर रहता था| उसे एक विद्या आती थी, वह पीतल को सोना बना देता था, लेकिन इस विद्या का प्रयोग वह तभी करता था, जब उसे उसकी बहुत जरूरत होती थी और वह भी गरीबों के फायदे के लिए|

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एक दिन एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण उसके पास आया| उसको अपनी लड़की का विवाह करना था और उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी, उसने फकीर को अपनी परेशानी बताई| फकीर ने समझ लिया कि वह सचमुच परेशानी में है|

उसने पीतल के एक बर्तन को सोने का बनाकर उसे दे दिया और कहा कि इस बर्तन को बेचकर उस रुपए से अपनी बेटी का ब्याह कर देना|

ब्राह्मण उस बर्तन को लेकर एक सुनार की दुकान पर गया|

जब उसने सुनार को वह बर्तन दिखाया तो सुनार को संदेह हुआ| ऐसे फटेहाल आदमी के पास सोने का बर्तन! हो न हो यह राजा का ही है|

सुनार उसे पकड़कर राजा के पास ले गया| राजा ने पूछा कि क्या बात है| तो उसने सारी बात सच-सच बता दी|

सुनकर राजा के मन में लालच आ गया| उसने सोचा कि फकीर को बुलाकर यह विद्या सीखनी चाहिए|

यह सोचकर उसने ब्राह्मण को तो छोड़ दिया, साथ ही अपने एक आदमी से कहा कि जाओ और उस फकीर को पकड़कर ले आओ, आदमी गया और थोड़ी देर में फकीर को साथ लेकर आ गया| राजा ने कहा – “फकीर तुम पीतल को सोना बनाना जानते हो?”

फकीर बोला-“जी हां|”

राजा ने कहा – “यह विद्या हमें सिखा दो|”

फकीर निडरता से बोला – “नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता|”

“जानते हो, मैं कौन हूं|” राजा ने कड़ककर कहा|

फकीर बोला – “जानता हूं, खूब अच्छी तरह से जानता हूं|”

राजा को बड़ा गुस्सा आया|

उसने कहा – “मैं तुम्हें पंद्रह दिन का समय देता हूं| अगर इस बीच तुमने मुझे विद्या सिखा दी तो ठीक, नहीं तो तुम्हें फांसी के तख्ते पर लटकवा दूंगा|”

उसने फकीर को भेज दिया| वह रोज शाम को उसके पास आदमी भेजता कि वह तैयार है या नहीं| फकीर का एक ही उत्तर होता – “नहीं|”

ऐसी विद्या को राजा छोड़ना नहीं चाहता था| उसने देख लिया कि फकीर को डराने-धमकाने से कोई नतीजा नहीं निकलेगा तो उसने दूसरा उपाय सोचा| जब सात दिन बाकी रह गए तो उसने अपना भेष बदला और फकीर के पास जाकर उसकी सेवा करने लगा| उसने फकीर की इतनी सेवा की कि फकीर खुश हो गया| उसने पूछा – “बोल, तू क्या चाहता है?”

राजा ने कहा – “मुझे आप वह विद्या सिखा दीजिए, जिससे आप पीतल से सोना बना देते हैं|

फकीर ने उसे वह विद्या सिखा दी और कहा – “देख इसका इस्तेमाल दीन-दुखियों की भलाई के लिए ही करना|”

राजा अपने महल में आ गया| पंद्रहवें दिन उसने फकीर को बुलाया और कहा – “बोलो, विद्या सिखाने को तैयार हो या नहीं?”

फकीर ने कहा – “नहीं|”

“तो तुम्हें फांसी दिलवा दूं|”

“जरूर|”

तब राजा ने गर्व से हंसकर कहा – “जिस विद्या का तुम्हें इतना घमण्ड है, उसे मैं जानता हूं|”

इतना कहकर राजा ने एक पीतल के बर्तन को सोने का बनाकर दिखा दिया|

फकीर ने कहा – “राजन, तुमने यह विद्या किसी की सेवा करके सीखी है| विद्या कभी भी डरा-धमकाकर हासिल नहीं की जा सकती|”

सेर को स
मन की आव

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