मोतियों का हार (तेनालीराम) – शिक्षाप्रद कथा
रोजाना की भांति कृष्णा देव राय अपने दरबार में बैठे अपनी प्रजा के दुख-सुख सुन रहे थे कि तभी उनके दरबार में दो भाई आये|
रोजाना की भांति कृष्णा देव राय अपने दरबार में बैठे अपनी प्रजा के दुख-सुख सुन रहे थे कि तभी उनके दरबार में दो भाई आये|
किसी ने महाराज कृष्णदेव राय को एक तोता भेंट किया| यह तोता बड़ी मीठी और सुन्दर-सुन्दर बातें करता था| वह लोगों के प्रश्नों के उत्तर भी देता था|
तेनालीराम और राजा कृष्णदेव राय में एकबार किसी बात पर कहासुनी हो जाने पर तेनालीराम नाराज होकर कहीं चला गया|
एक बार राजा कृष्णदेव राय ने अपने दरबारियों से जादू का खेल देखने की इच्छा ज़ाहिर की|
एक बार राजा कृष्णदेव राय का, पड़ोसी राज्य से युद्ध छिड़ गया| युद्ध में जंग जीतकर राजा जब अपने साथियों के साथ अपनी राजधानी को वापिस आ रहे थे तो तेनालीराम कहीं पीछे ही रहे गये|
बहुत पुरानी बात है| दुनिया का निर्माण-कार्य गति पा चुका था| अनेक जीव-जन्तु अपने-अपने तरीकों से जिंदगी बिताने के लिए कामों में लगे थे|
एक जंगल में एक शेर, सियार, लोमड़ी और गीदड़ चार मित्र थे| शेर उनका लीडर था| वे जंगल में जिधर भी निकल जाते, तबाही मचा देते|
नन्दू बहुत ही अच्छा बच्चा था| वह नित्य अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करता, ईश्वर की वन्दना करता, गुरुजनों का सम्मान करता था|
एक राज्य का राजा बड़ा सनकी था| उसे रोज नई कहानी सुनने की लत थी| शहर भर से किस्से-कहानी सुनाने वाले आते और उसे रोज नए-नए किस्से-कहानी सुनाया करते थे|
एक मधुमक्खी थी| एक बार एक उड़ती हुई तालाब के ऊपर से जा रही थी| अचानक वह तालाब के पानी में गिर गई| उसके पंख गीले हो गए|