रावण का यज्ञ विध्वंस (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
लंकाधीश रावण क्रोध से दांत किटकिटा रहा था| उसके सारे प्रमुख बलशाली योद्धा युद्ध में मारे जा चुके थे|
लंकाधीश रावण क्रोध से दांत किटकिटा रहा था| उसके सारे प्रमुख बलशाली योद्धा युद्ध में मारे जा चुके थे|
श्रीराम और रावण युद्ध चरमसीमा पर पहुंच चुका था| एक-एक करके रावण के अनेक सेनापति, पुत्र मेघनाथ, भाई कुंभकर्ण समेत कई राक्षस मारे जा चुके थे|
राम और रावण की सेनाओं में भयंकर युद्ध चल रहा था| रावण का पुत्र मेघनाथ लक्ष्मणके सम्मुख युद्ध में रत था|
भगवान श्रीराम ने अपने प्रतिज्ञा पूरी की| उन्होंने बालि का वध करके सुग्रीव को भयमुक्त करके किष्किंधा का राज्य सौंप दिया|
सूर्यदेव से शिक्षा प्राप्त करके हनुमान जी वापस कांचनगिरी पर पहुंचे| माता अंजना, पिता केसरी उन्हें सम्मुख पाकर बहुत हर्षित हुए|
माता अंजना अपने पुत्र की मानसिक स्थिति देखकर कभी कभी उदास हो जातीं और वानरराज केसरी तो प्रायः चिंतित ही रहा करते|
बालक हनुमान बड़े ही चंचल और नटखट थे| एक तो प्रलयंकर शंकर के अवतार, दूसरे कपि-शावक, उस पर देवताओं द्वारा प्रदत्त अमोघ वरदान|
बालक पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है माता के जीवन एवं उसकी शिक्षा का| आदर्श माताएं पुत्र को श्रेष्ठ एवं आदर्श बना देती हैं|
उद्धव बचपन से ही सारथी के रूप में श्रीकृष्ण जी की सेवा में रहे, किन्तु उन्होंने श्री कृष्ण जी से कभी न तो कोई इच्छा जताई और न ही कोई वरदान माँगा।
माता अंजना अपने प्राणप्रिय पुत्र हनुमान का लालन-पालन बड़े ही मनोयोगपूर्वक करतीं| कपिराज केसरी भी उन्हें अत्यधिक प्यार करते|