अर्जुन का गर्व खंडित (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
द्वापर युग में अर्जुन भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करते और उनसे पाशुपत नामक अमोघ अस्त्र लिए हिमालय में पहुंचे तो जंगल में उनकी भेंट एक वानर से हो गई|
द्वापर युग में अर्जुन भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करते और उनसे पाशुपत नामक अमोघ अस्त्र लिए हिमालय में पहुंचे तो जंगल में उनकी भेंट एक वानर से हो गई|
प्रातःकाल का समय था, हनुमान जी श्रीराम के ध्यान में डूबे थे| तन-मन का होश न था| समुद्र की लहरों का शोर तक उन्हें सुनाई नहीं दे रहा था|
रावण के दस सिर और बीस हाथ कटने पर भी पुनः जुड़ जाते थे| यह एक चमत्कार था| कई बार उसने राम के साथ युद्ध किया, पर हर बार वह लंका सुरक्षित लौट जाता था|
एक बार अर्जुन भगवान शंकर की तपस्या करने हिमालय के जंगलों में चले गए और शिव की घोर तपस्या में मग्न हो गए|
लक्ष्मण के शेल द्वारा घायल होने के पश्चात सभी देवताओं को बुलाया गया| शिव, ब्रह्मा, यम, कुबेर, वायुदेव आदि सभी वहां पहुंच गए|
केरल के विख्यात सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश एवं पूजा करने रास्ता खोलकर सुप्रीम कोर्ट ने नारी की अस्मिता एवं अस्तित्व को एक नयी पहचान दी है।
एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कि अपने कहलाने वाले भक्तों एवं सेवकों में जो अभिमान और दुर्गुण प्रवेश कर दिए गए हैं उन्हें अवश्य दूर करना चाहिए|
भगवान श्रीराम जब समुद्र पार सेतु बांध रहे थे, तब विघ्न-निवारणार्थ पहले उन्होंने गणेश जी की स्थापना कर नवग्रहों की नौ प्रतिमाएं नल के हाथों स्थापित करवाई|
हनुमान जी बड़े आश्चर्य में थे| अब तक श्रीराम ने उनकी किसी भी बात पर कभी ‘ना’ नहीं की थी| किंतु उस दिन न जाने क्यों वह बार-बार हनुमान जी के प्रस्ताव को ठुकरा रहे थे|
समुद्र पार जाने के लिए पुल के निर्माण का काम प्रगति पर था| राम की सेना उत्साह से फूली नहीं समा रही थी| भालू-वानर भाग-भागकर काम कर रहे थे|