अध्याय 59
1 [स]
तं तु यान्तं महावेगैर अश्वैः कपिवरध्वजम
युद्धायाभ्यद्रवन वीराः कुरूणां नवती रथाः
परिवव्रुर नरव्याघ्रा नरव्याघ्रं रणे ऽरजुनम
1 [स]
तं तु यान्तं महावेगैर अश्वैः कपिवरध्वजम
युद्धायाभ्यद्रवन वीराः कुरूणां नवती रथाः
परिवव्रुर नरव्याघ्रा नरव्याघ्रं रणे ऽरजुनम
“Vaisampayana said, ‘Rejected thus by the princess, Kichaka, afflictedwith maddening lust and forgetting all sense of propriety, addressedSudeshna saying, ‘Do thou, Kekaya’s daughter, so act that thy Sairindhrimay come into my arms.
“Yudhishthira said,–‘Desirous of the imperial dignity but acting fromselfish motives and relying upon courage alone, how, O Krishna, can Idespatch ye (unto Jarasandha)? Both Bhima and Arjuna, I regard as myeyes, and thee, O Janardana as my mind.
एक मूर्तिकार था| उसने अपनी कला अपने बेटे को भी सिखाई| पिता-पुत्र दोनों शहर जाते और मूर्तियाँ बेचते| पिता को अपनी मूर्ति के डेढ़ रुपये मिलते, जबकि बेटे को मात्र पचास पैसे|
एक राजा था| उसने सुना कि राजा परीक्षित् ने भगवती की कथा सुनी तो उनका कल्याण हो गया| राजा के मन में आया कि अगर मैं भी भागवती की कथा सुन लूँ तो मेरा भी कल्याण हो जायगा|
हे माँ मुझको ऐसा घर दो जिसमें तुम्हारा मन्दिर हो,
ज्योति जले दिन रैन तुम्हारी, तुम मन्दिर के अन्दर हो ।
“Sanjaya said, ‘Meanwhile the welkin, filled with gods and Nagas andAsuras and Siddhas and Yakshas and with large bands of Gandharvas andRakshasas, and Asuras and regenerate Rishis and royal sages and birds ofexcellent feathers, assumed a wonderful aspect.
1 बृहदश्व उवाच
दमयन्ती ततॊ दृष्ट्वा पुण्यश्लॊकं नराधिपम
उन्मत्तवद अनुन्मत्ता देवने गतचेतसाम
समुद्र के तट पर एक स्थान पर एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था| कुछ दिनों बाद टिटिहरी ने गर्भ धारण किया और जब उसके प्रसव का समय आया तो उसने अपने पति से कहा, ‘कान्त! अब मेरा प्रसव-काल निकट आ रहा है, इसलिए आप किसी ऐसे सुरक्षित स्थान की खोज कीजिए, जहां मैं शान्ति पूर्वक अपने बच्चों को जन्म दे सकूं|’
“Yudhishthira said, ‘O thou of great wisdom, a doubt I have that is verygreat and that is as vast as the ocean itself.