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1 [स] तं तु यान्तं महावेगैर अश्वैः कपिवरध्वजम
युद्धायाभ्यद्रवन वीराः कुरूणां नवती रथाः
परिवव्रुर नरव्याघ्रा नरव्याघ्रं रणे ऽरजुनम

एक मूर्तिकार था| उसने अपनी कला अपने बेटे को भी सिखाई| पिता-पुत्र दोनों शहर जाते और मूर्तियाँ बेचते| पिता को अपनी मूर्ति के डेढ़ रुपये मिलते, जबकि बेटे को मात्र पचास पैसे|

एक राजा था| उसने सुना कि राजा परीक्षित् ने भगवती की कथा सुनी तो उनका कल्याण हो गया| राजा के मन में आया कि अगर मैं भी भागवती की कथा सुन लूँ तो मेरा भी कल्याण हो जायगा|

हे माँ मुझको ऐसा घर दो जिसमें तुम्हारा मन्दिर हो,
ज्योति जले दिन रैन तुम्हारी, तुम मन्दिर के अन्दर हो ।

समुद्र के तट पर एक स्थान पर एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था| कुछ दिनों बाद टिटिहरी ने गर्भ धारण किया और जब उसके प्रसव का समय आया तो उसने अपने पति से कहा, ‘कान्त! अब मेरा प्रसव-काल निकट आ रहा है, इसलिए आप किसी ऐसे सुरक्षित स्थान की खोज कीजिए, जहां मैं शान्ति पूर्वक अपने बच्चों को जन्म दे सकूं|’