अध्याय 18
1 [स]
पातिते युधि दुर्धर्षॊ मद्रराजे महारथे
तावकास तव पुत्राश च परायशॊ विमुखाभवन
1 [य]
कथं कार्यं परीक्षेत शीघ्रं वाथ चिरेण वा
सर्वथा कार्यदुर्गे ऽसमिन भवान नः परमॊ गुरुः
1 [ष]
बहु वित्तं पराजैषीः पाण्डवानां युधिष्ठिर
आचक्ष्व वित्तं कौन्तेय यदि ते ऽसत्य अपराजितम
1 [व]
एवम उक्त्वा ययौ वयासॊ धृतराष्ट्राय धीमते
धृतराष्ट्रॊ ऽपि तच छरुत्वा धयानम एवान्वपद्यत
प्रदोष का अर्थ है रात्रि का शुभ आरम्भ|इस व्रत के पूजन का विधान इसी समय होता है| इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहते हैं| यह व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता हैं| इसका उदेशय संतान की कामना है|इस व्रत को स्त्री पुरुष दोनों ही कर सकते हैं| इस व्रत के उपास्य देव भगवान शंकर हैं|
“Bhishma said. ‘Then, O mighty-armed king, Sikhandin’s mother representedunto her lord the truth about her daughter, Sikhandin. And she said,’Childless, O great king, as I was, from fear of my co-wives, whenSikhandini, my daughter, was born, I represented unto you that it was ason!
“Sanjaya said, ‘After his son (Bhurisravas) had been slain by Satyakiwhile the former was sitting in Praya, Somadatta, filled with rage, saidunto Satyaki these words,
“Vaisampayana said, ‘O king, after Vidura had gone to the abode of thePandavas, Dhritarashtra, O Bharata, of profound wisdom, repented of hisaction.
एक बार की बात है| उज्जैन से झालरापाटन शहर में एक बारात आई थी| पूरे गाजे-बाजे के साथ बारात श्री लालचन्द मोमियां के यहाँ जा रही थी|
महात्मा बुद्ध ने सत्य-अहिंसा, प्रेम-करुणा, सेवा और त्याग से परिपूर्ण जीवन बिताया| जीवन-भर वह धर्म प्रचार के लिए, संघ को सुदृण करने के लिए प्रयत्नशील रहे| इस लंबी जीवन-यात्रा के बाद वह जब वह अंतिम यात्रा के लिए, निर्वाण के लिए प्रस्तुत हुए, तब उनका प्रिय शिष्य आनन्द रोने लगा| वह बोला- “गुरुदेव, आप क्यों जा रहे हैं? आपके निर्वाण के बाद हमें कौन सहारा देगा?”