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प्रदोष का अर्थ है रात्रि का शुभ आरम्भ|इस व्रत के पूजन का विधान इसी समय होता है| इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहते हैं| यह व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता हैं| इसका उदेशय संतान की कामना है|इस व्रत को स्त्री पुरुष दोनों ही कर सकते हैं| इस व्रत के उपास्य देव भगवान शंकर हैं|

महात्मा बुद्ध ने सत्य-अहिंसा, प्रेम-करुणा, सेवा और त्याग से परिपूर्ण जीवन बिताया| जीवन-भर वह धर्म प्रचार के लिए, संघ को सुदृण करने के लिए प्रयत्नशील रहे| इस लंबी जीवन-यात्रा के बाद वह जब वह अंतिम यात्रा के लिए, निर्वाण के लिए प्रस्तुत हुए, तब उनका प्रिय शिष्य आनन्द रोने लगा| वह बोला- “गुरुदेव, आप क्यों जा रहे हैं? आपके निर्वाण के बाद हमें कौन सहारा देगा?”