अध्याय 77
1 [वासु]
सुयॊधनम अतिक्रान्तम एनं पश्य धनंजय
आपद गतम इमं मन्ये नास्त्य अस्य सदृशॊ रथः
एक बड़े सदाचारी और विद्वान ब्राह्मण थे| उनके घर में प्रायः रोटी-कपड़े की तंगी रहती थी| साधारण निर्वाहमात्र होता था| वहाँ के राजा बड़े धर्मात्मा थे| ब्राह्मणी ने अपने पति से कई बार कहा कि आप एक बार तो राजा से मिल आओ, पर ब्राह्मण कहते हैं कि वहाँ जाने के लिए मेरा मन नहीं कहती|
1 [वै]
सरॊषरागॊपहतेन वल्गुना; सराग नेत्रेण नतॊन्नत भरुवा
मुखेन विस्फूर्य सुवीर राष्ट्रपं; ततॊ ऽबरवीत तं दरुपदात्मजा पुनः
अंबरीक मुहि वरत है राति पई दुरबासा आइआ|
भीड़ा ओस उपारना उह उठ नहावण नदी सिधाइआ|
नारायण जिनके हिरदय
नारायण जिनके हिरदय में सो कछु करम करे न करे रे ..
“Yajnavalkya said, ‘Thou hast asked me, O monarch, of that Supreme Brahmawhich resides in the Unmanifest.
1 [युधिस्ठिर]
किम इदं परमाश्चर्यं धयायस्य अमितविक्रम
कच चिल लॊकत्रयस्यास्य सवस्ति लॊकपरायण
एक व्यापारी अपने ग्राहक को शहद दे रहा था| अचानक व्यापारी के हाथ से छूटकर शहद का बर्तन गिर पड़ा| बहुत-सा शहद भूमि पर ढुलक गया| जितना शहद व्यापारी उठा सकता था, उतना उसने ऊपर-ऊपर से उठा लिया; लेकिन कुछ शहद भूमि में गिरा रह गया|