भाई भाना परोपकारी जी (Bhai Bhana Propkari Ji)
जिऊं मणि काले सप सिरि हसि हसि रसि देइ न जाणै |
जाणु कथूरी मिरग तनि जींवदिआं किउं कोई आनै |
जिऊं मणि काले सप सिरि हसि हसि रसि देइ न जाणै |
जाणु कथूरी मिरग तनि जींवदिआं किउं कोई आनै |
राणोजी रूठे तो म्हारो कांई करसी
म्हे तो गोविन्दरा गुण गास्यां हे माय॥
1 And it came to pass in the days of Amraphel king of Shinar, Arioch king of Ellasar, Chedorlaomer king of Elam, and Tidal king of Goiim,
1 [वैषम्पायन]
ततः पुनः स गाङ्गेयम अभिवाद्य पिता महम
पराञ्जलिर नियतॊ भूत्वा पर्यपृच्छद युधिष्ठिर
“‘Vasishtha said, ‘It is thus, in consequence of his Ignorance and hisassociation with others that are invested with Ignorance, that Jiva hasrecourse to millions and millions of births every one of which hasdissolution in the end.
उधर रानी दिन-रात ब्राह्मण के घर काम में जुटी रहती थी| ब्राह्मण उसके बेटे रोहिताश्व को भी काम बताता रहता था| एक दिन उसने रोहिताश्व को बगीचे से पूजा के फूल लेन को भेजा, जहां एक विषैले सर्प ने उसे डस लिया|
प्राचीनकाल की बात है | तब वहां पेड़ों में पत्ते नहीं हुआ करते थे | पशु, पक्षी, मानव सभी को बिना पत्तों के पेड़ देखने की आदत थी | तब उन सभी की आदतें व मौसम सहने की शक्ति उसी के अनुसार होती थी | तब सर्दी के मौसम में बहुत तेज हवा नहीं चल पाती थी, क्योंकि पत्तियों के अभाव में हवा की तेजी बढ़ ही नहीं पाती थी | ठीक इसी प्रकार गर्मियों में सभी लोग गर्मी से बचने के लिए कोई न कोई इंतजाम कर लेते थे, क्योंकि पत्तों के बिना पेड़ छायादार नहीं होते थे |
1 [व]
एवम उक्तस तु विमनास तिर्यग्दृष्टिर अधॊमुखः
संहत्य च भरुवॊर मध्यं न किं चिद वयाजहार ह