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गुरु जी गया पहुंचे| यह शहर गयासुर दैंत्य का बसाया हुआ है, जिसके नाम पर ही इसका नाम गया प्रसिद्ध है| हिन्दुओं के विश्वास अनुसार यहां प्राणियों के पिंड बनाने से उनकी गति हो जाती है|

गुरु जी ने हरिद्वार पहुंचकर देखा कि लोग इश्नान करते हुए नवोदित सूर्य की ओर पानी हाथों से उछाल रहे हैं तो आप ने पश्चिम की ओर मुंह करके दोनों हाथों से पानी उछालना शुरू कर दिया|

गुरु जी ने जैसे ही अयोध्या नगरी में प्रवेश किया, लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई| गुरु जी ने एक पण्डित से पूछा कि हमने सुना है कि अयोध्या नगरी को श्रीराम जी अपने साथ बैकुण्ठ में ले गए थे, फिर यह तो यहीं के यहीं हैं|

गुरु जी मरदाने को साथ लिए चल रहे थे तो मरदाने ने कहा, गुरु जी मुझे बहुत भूख लगी है|

श्री गुरु नानक देव जी आसाम देश के कामरुप क्षेत्र के गौहाटी शहर से बाहर जा बैठे| मरदाने को भूख लगी, कुछ खाने के लिए शहर में चला गया|

श्री गुरु नानक देव जी बनारस पहुंचे तो गुरु जी की वेश-भूषा-गेरुए रंग वाला करता, ऊपर सफेद चादर, एक पांव में जूती एक पांव में खौंस, सर पर टोपी, गले में माला, माथे पर केसर का तिलक देखकर लोग इकट्ठे हो गए|

श्री गुरु नानक देव जी विध्यांचल के दक्षिणी जंगलों में गए| वहां कौड़ा नाम का राक्षस रहता था जो इन्सानों को तलकर खाता था| कौड़ा राक्षस मरदाने को तल कर खाने लगा था| परन्तु गुरु जी ने वहां समय पर पहुंच कर मरदाने की रक्षा की|

श्री गुरु नानक देव जी सतलुज नदी को पार करके सांई बुढण शाह के पास पहाड़ी स्थान पर पहुंच गए| इस वृद्ध फकीर के पास शेर और बूढ़ी बकरियां थी| उसने अपना एकांत में रहकर भक्ति का कारण बताया कि संसार में भ्रमण करके भक्ति नहीं हो सकती|