Chapter 219
“Markandeya continued, ‘He (Uktha) performed a severe penance lasting formany years, with the view of having a pious son equal unto Brahma inreputation.
“Markandeya continued, ‘He (Uktha) performed a severe penance lasting formany years, with the view of having a pious son equal unto Brahma inreputation.
वह भयानक सूअर गुर्राता हुआ अयोध्या पंहुचा और राजा के उपवन में घुसकर बिना भय के लता-वृक्षों को तोड़ने-फोड़ने लगा| कुंजो को उसने नष्ट कर दिया और वृक्षों को जड़ सहित उखाड़ फेंका|
पुराने जमाने की बात है। एक सम्राट गहरी चिंता में डूबा रहता। कहने को तो वह शासक था पर वह अपने को अशक्त, परतंत्र और पराजित अनुभव करता था। एक दिन वह अपनी चिंताओं से पीछा छुड़ाने के लिए बहुत दूर एक जंगल में निकल पड़ा। उसे वहां बांसुरी के स्वर सुनाई पड़े। एक झरने के पास वृक्षों की छाया तले एक युवा चरवाहा बांसुरी बजा रहा था। उसकी भेड़ें पास में ही विश्राम कर रही थीं। सम्राट ने चरवाहे से कहा, ‘तुम तो ऐसे आनंदित हो जैसे तुम्हें कोई साम्राज्य मिल गया है।’
1 [वै]
शरुत्वेमां धर्मसंयुक्तां धर्मराजः कथां शुभाम
पुनः पप्रच्छ तम ऋषिं मार्कण्डेयं तपस्विनम
बहुत समय पहले नादुक नाम का एक धनी व्यापारी रहता था| कुछ समय बाद उसे व्यापार में घाटा पड़ गया और वह कर्ज में डूब गया|
मुंह के भीतर छाले पड़ने को ‘मुखपाक’ भी कहते हैं| यह एक ऐसा रोग है जिसके कारण रोगी को भोजन करने, बोलने तथा गाने आदि में अपार कष्ट होता है|