अध्याय 197
1 [मार्क]
कश चिद दविजातिप्रवरॊ वेदाध्यायी तपॊधनः
तपस्वी धर्मशीलश च कौशिकॊ नाम भारत
श्रीलक्ष्मणजी शेषावतार थे| किसी भी अवस्थामें भगवान् श्रीरामका वियोग इन्हें सहा नहीं था| इसलिये ये सदैव छायाकी भाँति श्रीरामका ही अनुगमन करते थे| श्रीरामके चरणोंकी सेवा ही इनके जीवनका मुख्य व्रत था|
“Yudhishthira said, ‘The Vedas, O Bharata, discourse of Religion. Profit,and Pleasure. Tell me, however, O grandsire, the attainment of which(amongst these three) is regarded as superior.’
एक बार एक गांव में दो भाई रहा करते थे | उनका नाम था चांगी और मांगी | कहने को तो वे दोनों सगे भाई थे परंतु उनकी आदत एक दूसरे के विपरीत थी |
1 [धृ]
सनत्सुजात यद इमां परार्थां; बराह्मीं वाचं परवदसि विश्वरूपाम
परां हि कामेषु सुदुर्लभां कथां; तद बरूहि मे वाक्यम एतत कुमार