अध्याय 92
1 [व]
तथा कथयतॊर एव तयॊर बुद्धिमतॊस तदा
शिवा नक्षत्रसंपन्ना सा वयतीयाय शर्वरी
1 [भस]
गुणैः समुदितं सम्यग इदं नः परथितं कुलम
अत्य अन्यान पृथिवीपालान पृथिव्याम अधिराज्यभाक
Sanjaya said, “While they were battling, the Sun set, O Bharata, aidthere came the dreadful hour of twilight and the battle could no longerbe seen.
“Janamejaya said, ‘I desire to hear from thee about the birth and life ofthe high-souled Bharata and of the origin of Sakuntala. And, O holy one,I also desire to hear all about Dushmanta–that lion among men–and howthe hero obtained Sakuntala. It behoveth thee, O knower of truth and thefirst of all intelligent men, to tell me everything.’
Vaisampayana said, “They then all saw king Dhritarashtra, O Janamejaya,and having seen him, enquired after his welfare, and were, in return,asked about their welfare.
भगवान बुद्ध श्रावस्ती में ठहरे हुए थे। वहां उन दिनों भीषण अकाल पड़ा था। यह देखकर बुद्ध ने नगर के सभी धनिकों को बुलाया और कहा, ‘नगर की हालत आप लोग देख ही रहे हैं। इस भयंकर समस्या का समाधान करने के लिए आगे आइए और मुक्त हाथों से सहायता कीजिए।’ लेकिन गोदामों में बंद अनाज को बाहर निकालना सहज नहीं था। श्रेष्ठि वर्ग की करुणा जाग्रत नहीं हुई। उन्होंने उन अकाल पीडि़त लोगों की सहायता के लिए कोई तत्परता नहीं दिखाई।
1 [मार्क]
इक्ष्वाकौ संस्थिते राजञ शशादः पृथिवीम इमाम
पराप्तः परमधर्मात्मा सॊ ऽयॊध्यायां नृपॊ ऽभवत
शुद्ध देशी घी जैसी वस्तु इस संसार में दूसरी कोई नहीं है| यह स्मरण-शक्ति को तीव्र बनाता है| इससे मेधा प्रखर व बुद्धि प्रबल बनती है| चिन-यौवन का अनुदान मिलता है| अणु-अणु में सौंदर्य स्फूर्त रहता है| शुद्ध घी अमृत के समान है| यह बात, कफ एवं पित्त को विदा करता है, थकान को दूर करता है| हृदय को अत्यंत हितकर है| चित्त को प्रसन्न करता है| किन्तु रक्तचाप, श्वास एवं खांसी में घी हानि करता है| तथा ज्वर रोगी को कभी भूलकर भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए|
एक दिन एक खरगोश अपना घर छोड़कर निकट के खेत में भोजन के लिए गया| इसी बीच एक नेवले ने उसके घर में घुसकर अपना अधिकार जमा लिया| जब खरगोश लौटा, तब घर में नेवले को पाया|
इस पृथ्वी पर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा नगरी है| वहां रूपणिका नाम की एक वेश्या रहती थी| उसकी मां मकरदंष्ट्रा बड़ी ही कुरूप और कुबड़ी थी| वह कुटनी का कार्य भी करती थी| रूपणिका के पास आने वाले युवक उसकी मां को देखकर बड़े दुखी होते थे|