अध्याय 31
1 [य]
उत सन्तम असन्तं च बालं वृद्धं च संजय
उताबलं बलीयांसं धाता परकुरुते वशे
“Markandeya said, ‘It was thus, O mighty-armed one, that Rama ofimmeasurable energy had suffered of old such excessive calamity inconsequence of his exile in the woods!
मेरे बाबा सुन लो, मन की पुकार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।
“Yudhishthira said, ‘O grandsire, O thou of great wisdom, I desire tohear in detail, O chief of the Bharatas, of that lotus-eyed andindestructible one, who is the
Sanjaya said, “When the forenoon of that day had passed away, O Bharata,and when the destruction of cars, elephants, steeds, foot-soldiers andhorse-soldiers, proceeded on, the prince of Panchala engaged himself inbattle with these three mighty car-warriors, viz.,
श्रुतायुध के पास भगवान शंकर के वरदान से प्राप्त एक अमोघ गदा थी। इसके पीछे एक कथा यह थी कि श्रुतायुध के तप से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उपहार स्वरूप यह वरदान उसे इस शर्त पर दिया था कि वह कभी भी उस गदा का अनीतिपूर्वक उपयोग न करे। यदि वह नीति के विरुद्ध आचरण करेगा तो लौटकर वह उसका ही विनाश कर देगी।
OM! AFTER HAVING bowed down to Narayana, and Nara, the foremost of men,and unto the goddess Saraswati also, must the word Jaya be uttered.
“Sauti said, ‘O ascetic, about this time the two sisters saw approachingnear, that steed of complacent appearance named Uchchaihsravas who wasworshipped by the gods, that gem of steeds, who arose at the churning ofthe Ocean for nectar. Divine, graceful, perpetually young, creation’smaster-piece, and of irresistible vigour, it was blest with everyauspicious mark.’
युधिष्ठिर के राज्य में चारों ओर सुख, शान्ति और समृद्धि थी| कुछ वर्षों पश्चात राज्य के प्रमुख सदस्यों ने उन्हें राजसूय यज्ञ संपन्न करने का आग्रह किया|
खून की खराबी अर्थात् रक्त विकार एक घातक रोग है| यदि समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो कष्टदायी चर्म रोग घेर लेते हैं| इनसे व्यक्ति के मन में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है|