अध्याय 21
1 [व]
तस्य तद वचनं शरुत्वा परज्ञावृद्धॊ महाद्युतिः
संपूज्यैनं यथाकालं भीष्मॊ वचनम अब्रवीत
“Surya said, ‘Never do, O Karna, anything that is harmful to thy self andthy friends; thy sons, thy wives, thy father, and thy mother; O thou bestof those that bear life, people desire renown (in this world) and lastingfame in heaven, without wishing to sacrifice their bodies.
एक व्यक्ति नित्य ही समुद्र तट पर जाता और वहां घंटों बैठा रहता। आती-जाती लहरों को निरंतर देखता रहता। बीच-बीच में वह कुछ उठाकर समुद्र में फेंकता, फिर आकर अपने स्थान पर बैठ जाता। तट पर आने वाले लोग उसे विक्षिप्त समझते और प्राय: उसका उपहास किया करते थे।
इसे घिया के नाम से भी जाना जाता है| यह लम्बी और गोलाकार भी होती है| इसका रंग हल्का हरा होता है| यह स्वाद में मीठी, हल्की और सुपाच्य होती है| यह सब्जी से लेकर मिष्ठान्न तक में प्रयुक्त होती है|
Vaishampayana said: “Those princes of restrained souls and devoted toYoga, proceeding to the north, beheld Himavat, that very large mountain.Crossing the Himavat, they beheld a vast desert of sand.
“Sauti said, ‘O Brahmana, Chyavana, the son of Bhrigu, begot a son in thewomb of his wife Sukanya. And that son was the illustrious Pramati ofresplendent energy. And Pramati begot in the womb of Ghritachi a soncalled Ruru. And Ruru begot on his wife Pramadvara a son called Sunaka.And I shall relate to you in detail, O Brahmana, the entire history ofRuru of abundant energy. O listen to it then in full!
तन में राम मन में राम रोम रोम में समाया – 2
ओ सांई नाथ अनमोल खजाना जिन चाहा तिन पाया
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में युद्ध के पहले दिन, सूर्योदय होने के बाद सेनाएँ आमने-सामने खड़ी थीं|
“Sanjaya said, ‘Endued with the greatest activity, Drona’s son, O king,displaying the lightness of his arms, pierced Bhima with an arrow.