अध्याय 190
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गतीनाम उत्तमा पराप्तिः कथिता जापकेष्व इह
एकैवैषा गतिस तेषाम उत यान्त्य अपराम अपि
“Yudhishthira said, ‘O thou that knowest the truths of religion, I wishto hear of the merits of compassion, and of the characteristics of devoutmen. Do thou, O sire, describe them to me.’
“YUDHISHTHIRA SAID, ‘THOU hast, O grandsire, discoursed upon theauspicious duties (of person in distress) connected with the duties ofkings. It behoveth thee now, O king, to tell me those foremost of dutieswhich belong to those who lead the (four) modes of life.’
यह पचने में हल्की और रुक्षताकारक होती है| इसका प्रभाव शीतल होने से यह पित्तनाशक मानी गयी है| इससे शरीर तथा पेट की जलन शांत होती है| छिलके युक्त मूंग की दाल नेत्रों के लिए बहुत ही हितकर होती है| इसे साबुत, छिलके वाली तथा छिलका रहित प्रयोग किया जाता है| सभी प्रकार के ज्वरों में साबुत मूंग या मूंग की दाल का प्रयोग आहार के रूप में किया जाता है|
प्राचीन कल की बात है, बहूदक नामक तीर्थ में नन्दभद्र नाम के एक वैश्य रहते थे| वे वर्णाश्रम-धर्म का पालन करने वाले सदाचारी पुरुष थे| उनकी धर्मपत्नी का नाम कनका था|
Sanjaya said,–“Then, O bull of Bharata’s race, king Yudhishthira,disposing his own troops in counter array against the divisions ofBhishma, urged them on, saying
“Vaisampayana said, ‘Then while a great havoc was being made among theKurus, Santanu’s son, Bhishma, and grandsire of the Bharatas rushed at
दो संन्यासी थे। एक वृद्ध और एक युवा। दोनों साथ रहते थे। एक दिन महीनों बाद वे अपने मूल स्थान पर पहुंचे। जो एक साधारण-सी झोपड़ी थी। किंतु जब दोनों झोपड़ी में पहुंचे तो देखा कि वह छप्पर भी आंधी और हवा ने उड़ाकर न जाने कहां पटक दिया।
“Sakuni said,–‘Thou hast, O Yudhishthira, lost much wealth of thePandavas. If thou hast still anything that thou hast not yet lost to us,O son of Kunti, tell us what it is!”