सद्आचरण की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित
सद्आचरण की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या
सद्आचरण की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या
भिक्षा देदे माई भिक्षा देदे माई,
तेरे द्वार पे चलके आया शिरडी वाला साँई,
आग या किसी गरम वस्तु से जल जाने पर उस स्थान की त्वचा नष्ट हो जाती है, जिससे विषक्रमण (सेप्टिक) होने का भय रहता है| इसलिए रोगी को बाहर की दूषित वायु से जले हुए भाग की सुरक्षाकरना भी बहुत जरूरी है|
कमर का दर्द प्राय: गलत रहन-सहन से होता है| कमर को असंतुलित अवस्था में रखना ही इस दर्द का कारण बनता है| अत: इस रोग की दवा के साथ-साथ कमर को संतुलित एवं सीधी दिशा में रखना हितकर होता है|
“‘Shalya said, “Do not, O Suta’s son, give away to any man a golden carwith six bulls of elephantine proportions. Thou wilt obtain a sight ofDhananjaya today.
द्रोणाचार्य भरद्वाज मुनिके पुत्र थे| ये संसारके श्रेष्ठ धनुर्धर थे| महाराज द्रुपद इनके बचपनके मित्र थे| भरद्वाज मुनिके आश्रममें द्रुपद भी द्रोणके साथ ही विद्याध्ययन करते थे|
किसी गांव में एक ब्राह्मण रहता था| उसके पास खेती-बाड़ी के लिए जमीन थी, लेकिन उस जमीन पर फसल अच्छी नहीं होती थी| बेचारा परेशान था|