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उष्ण प्रकृति वालों को एवं पित्तजन्य व्याधियों में तोरई का सेवन विशेष हितकर है| यह मधुर, पित्तनाशक, कफ-वात वर्धक, मृदु-रेचक, कृमि-नाशक, मूत्रल ज्वर, रक्त पित्त तथा कुष्ठादि विकारों में पथ्यकर व लाभप्रद है|

(1) पितृतीर्थ-नरोत्तम नाम का एक तपस्वी ब्राह्मण था| वह माता-पिता की सेवा छोड़कर तीर्थयात्रा के लिये निकल पड़ा| तीर्थ-सेवन की महिमा से उसके गीले कपड़े आकाश में सूखते थे|

एक सेठ थे| उनके पास लाखों रुपए की संपत्ति थी| बड़े हवेली थी, देश-विदेश में फैला कारोबार था, तिजोरियां में बंद पैसा था| एक दिन एक महानुभाव उनसे मिलने आए| बातचीत में उन्होंने कहा – “सेठजी, अब तो महंगाई बेहिसाब बढ़ गई है| चीजों के दाम दुगने हो गए हैं| आपकी संपत्ति भी बढ़कर अब करोड़ों रुपए की हो गई है|”