अध्याय 95
1 [ज]
धर्मागतेन तयागेन भगवन सर्वम अस्ति चेत
एतन मे सर्वम आचक्ष्व कुशलॊ हय असि भाषितुम
हजरत लुकमान बड़े ऊंचे दर्जे के आदमी थे| उनके दिल में न किसी के लिए ईर्ष्या थी, न किसी प्रकार का मोह| उनका मालिक उन्हें बहुत चाहता था| जब भी कोई बढ़िया चीज आती वह लुकमान के लिए भेज देता| लुकमान ने अपने प्रेम से उसे एकदम वश में कर लिया था|
1 [लॊमष]
धनंजयेन चाप्य उक्तं यत तच छृणु युधिष्ठिर
युधिष्ठिरं भरातरं मे यॊजयेर धर्म्यया शरिया
1 [गुरु]
परवृत्ति लक्षणॊ धर्मॊ यथायम उपपद्यते
तेषां विज्ञाननिष्ठानाम अन्यत तत्त्वं न रॊचते
“Bhishma said, ‘Thus commanded, the lady said,–Be it so. She thenbrought oil (for rubbing the Rishi’s body therewith) and a piece of clothfor his wear during the ablutions.
एक बूढ़े व्यापारी की देखरेख में माल से लदी बैलगाडियों का काफ़िला रेगिस्तान में प्रवेश करनेवाला था| तभी एक व्यापारी दूसरे व्यापारी से बोला, ‘इस रेगिस्तान को पार करने के नाम से ही मुझे तो कपकपी छूटने लगती है|’
“Yudhishthira said, ‘Thou hast said, O grandsire, that the foundation ofall evils is covetousness. I wish, O sire, to hear of ignorance indetail.’
“Dhritarashtra said,–‘Tell me, O Sanjaya, thou of great intelligence, ofthe regions to the north and the east side of Meru, as also of themountains of Malyavat, in detail.[50]
जीवन दर्शनः एक युवा संन्यासी एक वृद्ध संन्यासी के सान्निध्य में रहकर ज्ञान प्राप्ति के लिए उनके आश्रम में आया।