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किसी वन में हाथियों के झुंड के साथ उनका मुखिया चतुर्दन्त रहता था| एक बार उस वन में कई वर्षों तक वर्ष नही हुई, जिसकी वजह से छोटे-बड़े और कच्चे-पक्के सरोवर सूखने लगे| इसके फलस्वरूप प्रतिदिन हाथी काल का ग्रास बनने लगे| ऐसी विकट स्थिति में हाथियों ने अपने मुखिया चतुर्दन्त से प्यास से मरते परिजनों के लिए नया जलाशय खोजने की प्रार्थना की|

नदी की अनेक धाराएं साथ-साथ बहती चली आ रही थीं। उन्हीं में से एक धारा अपने गतिशील जीवन से ऊबकर आगे न जाकर आम के वृक्षों की छाया तले विश्राम करना चाहती थी। तब एक अन्य धारा ने समझाया कि गतिशीलता में ही हमारी पवित्रता है।

बात उस समय की है जब राज्य की व्यवस्था के लिये शत्रुध्न को मथुरा में और लव-कुश आदि राजकुमारों को भिन्न-भिन्न स्थानों में भगवान् श्रीराम ने नियुक्त कर रखा था|