अध्याय 216
1 [य]
यया बुद्ध्या महीपालॊ भरष्ट शरीर विचरेन महीम
कालदण्ड विनिष्पिष्टस तन मे बरूहि पितामह
1 [य]
यया बुद्ध्या महीपालॊ भरष्ट शरीर विचरेन महीम
कालदण्ड विनिष्पिष्टस तन मे बरूहि पितामह
“Bhishma said, ‘After the fowler had left that spot, the she-pigeon,remembering her husband and afflicted with grief on his account, weptcopiously and indulged in these lamentations, ‘I cannot, O dear lord,recollect a single instance of thy having done me an injury!
किसी वन में हाथियों के झुंड के साथ उनका मुखिया चतुर्दन्त रहता था| एक बार उस वन में कई वर्षों तक वर्ष नही हुई, जिसकी वजह से छोटे-बड़े और कच्चे-पक्के सरोवर सूखने लगे| इसके फलस्वरूप प्रतिदिन हाथी काल का ग्रास बनने लगे| ऐसी विकट स्थिति में हाथियों ने अपने मुखिया चतुर्दन्त से प्यास से मरते परिजनों के लिए नया जलाशय खोजने की प्रार्थना की|
नदी की अनेक धाराएं साथ-साथ बहती चली आ रही थीं। उन्हीं में से एक धारा अपने गतिशील जीवन से ऊबकर आगे न जाकर आम के वृक्षों की छाया तले विश्राम करना चाहती थी। तब एक अन्य धारा ने समझाया कि गतिशीलता में ही हमारी पवित्रता है।
“Dhritarashtra said, ‘That illustrious person who had duly studied theVedas with all their branches, he, in whom the entire science of arms andmodesty
“Vaisampayana said, ‘Beholding that bull among men seated on the car inthe habit of a person of the third sex, driving toward the Sami tree,having taken (the flying) Uttara up, all the great car-warriors of theKurus with
“Vaisampayana said,–The mighty Bhishma ceased, having said this.Sahadeva then answered (Sisupala) in words of grave import, saying,–‘Ifamongst ye there be any king that cannot bear to see Kesava of dark hue,the slayer of Kesi, the possessor of immeasurable energy, worshipped byme, this my foot is placed on the heads of all mighty ones (like him).
बात उस समय की है जब राज्य की व्यवस्था के लिये शत्रुध्न को मथुरा में और लव-कुश आदि राजकुमारों को भिन्न-भिन्न स्थानों में भगवान् श्रीराम ने नियुक्त कर रखा था|