Chapter 38
‘Vaisampayana said, ‘Having issued forth from the city, the dauntless sonof Virata addressed his charioteer, saying, ‘Proceed whither the Kurusare.
‘Vaisampayana said, ‘Having issued forth from the city, the dauntless sonof Virata addressed his charioteer, saying, ‘Proceed whither the Kurusare.
“Vaisampayana said,–Then the king Yudhishthira hastily ran afterSisupala and spoke unto him sweetly and in a conciliating tone thefollowing words,–‘O lord of earth, what thou hast said is scarcelyproper for thee.
जिस तरह माता-पिता पुत्र के लिये परमात्मा की मूर्ति होते हैं, उसी तरह पत्नी के लिये पति परमात्मा की मूर्ति होता है| जिस तरह केवल माता-पिता की सेवा से सभी सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं, उसी तरह केवल पति की सेवा से सभी सिद्धियाँ मिल जाती हैं|
“‘Yudhishthira said, “Welcome, O thou that hast Devaki for thy mother,and welcome to thee, O Dhananjaya! The sight of both of you, O Acyuta andArjuna, is exceedingly agreeable!
सद्पुरुष कहते हैं, पुरुष को तपस्या करने से राज मिलता है, पर राज प्राप्ति के बाद उसको नरक भोगना पड़ता है, ‘तपो राज तथा राजो नरक’ इसका मूल भावार्थ यह है कि राज प्राप्ति के पश्चात मनुष्य अहंकारी हो जाता है|
अबु उस्मान हैरी बड़े ऊंचे दर्जे के संत थे| उनका स्वभाव बहुत ही शांत था| वे सबके साथ प्रेम का व्यवहार करते थे, कभी कोई कड़वी बात कह देता था तो वे बुरा नहीं मानते थे| क्रोध तो उन्हें आता ही नहीं था|
“Yudhishthira said, ‘What men, O chief of Bharata’s race, are worthy ofreverent homage in the three worlds? Tell me this in detail verily. I amnever satiated with hearing thee discourse on these topics.’