अध्याय 46
1 [स]
कृते ऽवहारे सैन्यानां परथमे भरतर्षभ
भीष्मे च युधि संरब्धे हृष्टे दुर्यॊधने तथा
जमशेदजी मेहता कराची के प्रसिद्ध सेठ व समाजसेवी थे। अपार धन के साथ उन्होंने उदार हृदय भी पाया था। असहायों के लिए मुक्त हस्त से व्यय करना उनकी प्रकृति में था।
एक बहुत ही सुंदर हरा-भरा वन था और वन के एक किनारे पर सुरम्य सरोवर था| उस सरोवर में बहुत-से हंस रहते थे| उन हंसों के राजा का नाम हंसराज था| वन में भी बहुत से पक्षी रहते थे, उन्हीं में एक था कनकाक्ष नामक उल्लू| उस उल्लू और हंसराज की प्रगाढ़ मित्रता थी|
“Sanjaya said, ‘When the weapon called Narayana was invoked, violentwinds began to blow with showers of rain, and peals of thunder were heardalthough the sky was cloudless.
“Vaisampayana said, ‘Thus despatched by her elder brother, the far-fameddaughter of king Matsya, adorned with a golden necklace, ever obedient
“Sisupala said–‘O thou of the Kuru race, this one of the Vrishni racedoth not deserve royal worship as if he were a king, in the midst of allthese illustrious monarchs. O son of Pandu, this conduct of thine in thuswillingly worshipping him with eyes like lotus-petals is not worthy ofthe illustrious Pandavas.
पुत्र के लिये माता-पिता की भक्ति ही एकमात्र धर्म है| इसके अतिरिक्त पुत्र के लिये और कोई धर्म नहीं है| एक वर्ष, एक मास, एक पक्ष, एक सप्ताह अथवा एक दिन जो भी पुत्र माता-पिता की भक्ति करता है, वह वैकुण्ठलोक की प्राप्त करता है|
“Sanjaya said, ‘Hearing these words of the righteous king who had beenfilled with anger, that high-souled atiratha, Jishnu of infinite energy,replied unto the invincible Yudhishthira of great might, saying, “Whilebattling with the samsaptakas today,