अध्याय 48
1 [ष]
सर्पसत्रे तदा राज्ञः पाण्डवेयस्य धीमतः
जनमेजयस्य के तव आसन्न ऋत्विजः परमर्षयः
“Sanjaya said, ‘Thus addressed by Janardana, Pritha’s son Arjuna,applauding those counsels of his friend, then vehemently addressed kingYudhishthira the just, in language that was harsh and the like of whichhe had never used before.
जनक जी एक धर्मी राजा थे| उनका राज मिथिलापुरी में था| वह एक सद्पुरुष थे| न्यायप्रिय और जीवों पर दया करते थे| उनके पास एक शिव धनुष था| वह उस धनुष की पूजा किया करते थे| आए हुए साधू-संतों को भोजन खिलाकर स्वयं भोजन करते थे|
एक भिखारी था| वह न ठीक से खाता था, न पीता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था| उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी| उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी| उसे कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था|
1 दमयन्त्य उवाच
न माम अर्हसि कल्याण पापेन परिशङ्कितुम
मया हि देवान उत्सृज्य वृतस तवं निषधाधिप
1 [य]
मग्नस्य वयसने कृच्छ्रे किं शरेयः पुरुषस्य हि
बन्धुनाशे महीपाल राज्यनाने ऽपि वा पुनः
“Bhishma said, ‘In one of the branches of that tree, a pigeon withbeautiful feathers, O king, lived for many years with his family. Thatmorning his wife had gone out in search of food but had not yet returned.