अध्याय 62
1 [स]
दुःशासने तु निहते पुत्रास तव महारथाः
महाक्रॊधविषा वीराः समरेष्व अपलायिनः
दश राजन महावीर्यॊ भीमं पराच्छादयञ शरैः
1 [स]
दुःशासने तु निहते पुत्रास तव महारथाः
महाक्रॊधविषा वीराः समरेष्व अपलायिनः
दश राजन महावीर्यॊ भीमं पराच्छादयञ शरैः
“Vaisampayana said, ‘After a while, another powerful son of Pandu wasseen making towards king Virata in haste. And as he advanced, he seemedto everyone like solar orb emerged from the clouds.
बहुत समय पहले की बात है| एक गुरु अपने शिष्यों के साथ घूमने जा रहे थे| वे अपने शिष्यों से बहुत स्नेह करते थे और उन्हें सदैव प्रकृति के समीप रहने की शिक्षा दिया करते थे|