अध्याय 8
1 [स]
तथ परववृते युद्धं कुरूणां भयवर्धनम
सृञ्जयैः सह राजेन्द्र घॊरं देवासुरॊपमम
“Sanjaya said, ‘Bhuri, O king, in that battle, resisted that foremost ofcar-warriors, viz., the grandson of Sini, who advanced like an elephanttowards a lake full of water.
Vaisampayana said, “Girding their waists with swords, and equipped withfinger-protectors made of iguana skins and with various weapons, thoseheroes proceeded in the direction of the river Yamuna.
1 [स]
तथा निपातिते कर्णे तव सैन्ये च विद्रुते
आश्लिष्य पार्थं दाशार्हॊ हर्षाद वचनम अब्रवीत
“Narada said,–the celestial assembly room of Sakra is full of lustre. Hehath obtained it as the fruit of his own acts. Possessed of the splendourof the sun, it was built, O scion of the Kuru race, by Sakra himself.
किसी नगर के छोर पर एक छोटी सी कुटिया में एक साधु रहता था| वह हमेशा ईश्वर की भक्ति में लीन रहता था| नगरवासी उसका बहुत आदर करते थे|
पाण्डवों को एकचक्रा नगरी में रहते कुछ काल व्यतीत हो गया तो एक दिन उनके यहाँ भ्रमण करता हुआ एक ब्राह्मण आया। पाण्डवों ने उसका यथोचित सत्कार करके पूछा, “देव! आपका आगमन कहाँ से हो रहा है?” ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “मैं महाराज द्रुपद की नगरी पाञ्चाल से आ रहा हूँ। वहाँ पर द्रुपद की कन्या द्रौपदी के स्वयंवर के लिये अनेक देशों के राजा-महाराजा पधारे हुये हैं।” पाण्डवों ने प्रश्न किया, “हे ब्राह्मणोत्तम! द्रौपदी में क्या-क्या गुण तथा विशेषताएँ हैं?”
Vaishampayana said, “After the ladies had been dismissed, Dhritarashtra,the son of Ambika, plunged into grief greater than that which hadafflicted him before, began, O monarch, to indulge in lamentations,exhaling breaths that resembled smoke, and repeatedly waving his arms,and reflecting a little, O monarch, he said these words.