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प्रदोष का अर्थ है रात्रि का शुभ आरम्भ|इस व्रत के पूजन का विधान इसी समय होता है| इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहते हैं| यह व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता हैं| इसका उदेशय संतान की कामना है|इस व्रत को स्त्री पुरुष दोनों ही कर सकते हैं| इस व्रत के उपास्य देव भगवान शंकर हैं|

महात्मा बुद्ध ने सत्य-अहिंसा, प्रेम-करुणा, सेवा और त्याग से परिपूर्ण जीवन बिताया| जीवन-भर वह धर्म प्रचार के लिए, संघ को सुदृण करने के लिए प्रयत्नशील रहे| इस लंबी जीवन-यात्रा के बाद वह जब वह अंतिम यात्रा के लिए, निर्वाण के लिए प्रस्तुत हुए, तब उनका प्रिय शिष्य आनन्द रोने लगा| वह बोला- “गुरुदेव, आप क्यों जा रहे हैं? आपके निर्वाण के बाद हमें कौन सहारा देगा?”

औषधि के रूप में इसका भी प्रयोग किया जाता है| खांसी व हृदय रोग में यह लाभ पहुंचाती है| स्वभाव से यह भारी है, किन्तु सेवन करने पर स्वादिष्ट लगती है| अरबी की सब्जी बनाकर खाएं| इसकी सब्जी में गर्म मसाला, दालचीनी और लौंग डालें| जिनके गैस बनती हो, गठिया और खांसी हो, उनके लिए अरबी हानिकारक है|

देवी रूक्मिणी का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्री कृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थी. राधा जी के जन्म में और देवी रूक्मिणी के जन्म में एक अन्तर यह है कि देवी रूक्मिणी का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधा जी का शुक्ल पक्ष में. राधा जी को नारद जी के श्राप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रूक्मिणी से कृष्ण जी की शादी हुई. राधा और रूक्मिणी यूं तो दो हैं परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं.