अध्याय 80
1 [व]
धनंजयॊत्सुकास ते तु वने तस्मिन महारथाः
नयवसन्त महाभागा दरौपद्या सह पाण्डवाः
कुछ दिन पहले की बात है| हरियाणा के औधोगिक नगर फरीदाबाद में इंग्लैंड में बसा भारत-मूल का एक प्रवासी एक स्थानीय वैध जी के पास पहुँचा|
“Yudhishthira said, ‘I have heard this great narrative, O perpetuator ofKuru’s race. Thou, O foremost of eloquent men, hast said that the statusof a Brahmana is exceedingly difficult of acquisition.
“Bhishma said, ‘The fowler, O king, happened to see that pair whileseated on their celestial car. Beholding the couple he became filled withsorrow (at the thought of his own misfortune) and began to reflect uponthe means of obtaining the same end.
नगर के बाहर बने शिव मंदिर में ताम्रचूड़ नामक एक सन्यासी रहता था, जो उस नगर में भिक्षा माँगकर बड़े सुख से अपना जीवन व्यतीत कर रहा था| वह अपने खाने-पीने से बचे अन्न-धान्य को एक भिक्षा पात्र में रख देता और फिर उस पात्र को रात्रि में खूंटी पर लटकाकर निश्चिंतता से सो जाया करता था| प्रातकाल ताम्रचूड़ स्नान-पूजादि से निवृत होकर उस अन्न-धान्य आदि को मंदिर के बाहर बैठनेवाले भिखारियों में बाँट देता था|
गंगा के किनारे खड़ी नाव में सभी यात्री बैठ चुके थे। बगल में ही युवक खड़ा था। नाविक ने उसे बुलाया, पर चूंकि उसके पास नाविक को उतराई देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वह नाव में नहीं बैठा और तैरकर घर पहुंचा।
“Sanjaya said, ‘Then Drona’s son began to cause a great carnage amongsthis foes in that battle, like the Destroyer himself at the end of theYuga.