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एक बार भगवान् श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से दुर्योधन के यज्ञ से निवृत होकर द्वारका लौटे थे| यदुकुल की लक्ष्मी उस समय ऐन्द्री लक्ष्मी की भी मात कर रही थी| सागर के मध्य स्थित श्रीद्वारकापुरी की छटा अमरावती की भी तिरस्कृत कर रही थी|

प्राचीन काल से भारत में अनेक प्रकार के प्रभु भक्ति के साथ रहे हैं| उस पारब्रह्म शक्ति की आराधना करने वाले कोई न कोई साधन अख्तयार कर लेते थे जैसा कि उसका ‘गुरु’ शिक्षा देने वाला परमात्मा एवं सत्य मार्ग का उपदेश करता था भाव-प्रभु का यश गान करता था|