अध्याय 46
1 [स]
महासत्त्वौ तु तौ दृष्ट्वा सहितौ केशवार्जुनौ
हतम आधिरथिं मेने संख्ये गाण्डीवधन्वना
“Vaisampayana said, ‘Then Saradwata’s son, Kripa said, ‘What the agedBhishma hath said concerning the Pandavas is reasonable, suited to theoccasion, consistent with virtue and profit, agreeable to the ear,fraught with sound reason, and worthy of him.
स्वर्णनगरी में एक भिश्ती (पानी भरनेवाला) रहता था| वह दिन-रात मेहनत करने के बाद भी मुश्किल से गुज़ारा चला पाता था|
Vaisampayana said,–that chastiser of all foes then vanquished kingSrenimat of the country of Kumara, and then Vrihadvala, the king ofKosala. Then the foremost of the sons of Pandu, by performing featsexcelling in fierceness, defeated the virtuous and mighty kingDirghayaghna of Ayodhya.
महाराज रन्तिदेव मनु के वंश में उत्पन्न हुए थे, इनके पिता का नाम सुकृत था| महाराज रन्तिदेव में मानवता कूट-कूट कर भरी हुई थी| ये प्राणीमात्र में भगवान् को देखा करते थे|
“Dhritarashtra said, ‘In that awful and fathomless encounter of thePandavas and the Srinjayas with the warriors of my army, when Dhananjaya,O sire, proceeded for battle, how, indeed, did the fight occur?’
किसी जंगल में चंडल नाम का श्रृंगाल रहता था| एक बार भूख के कारण एक नगर में घुस गया| बस फिर क्या था नगर के कुत्ते उसे देखते ही भौंकने लगे| उसके पीछे-पीछे थे वह बेचारा आगे-आगे भाग रहा था|