अध्याय 69
1 बृहदश्व उवाच
शरुत्वा वचः सुदेवस्य ऋतुपर्णॊ नराधिपः
सान्त्वयञ शलक्ष्णया वाचा बाहुकं परत्यभाषत
1 बृहदश्व उवाच
शरुत्वा वचः सुदेवस्य ऋतुपर्णॊ नराधिपः
सान्त्वयञ शलक्ष्णया वाचा बाहुकं परत्यभाषत
“Bhishma said, ‘It is even so as thou sayest, O thou of mighty arms.There is nothing untrue in all this that thou sayest, O thou of Kuru’srace, on the subject of women.
1 [वयास]
भूतग्रामे नियुक्तं यत तद एतत कीर्तितं मया
बराह्मणस्य तु यत्कृत्यं तत ते वक्ष्यामि पृच्छते
एक बार भगवान बुद्ध राजगृह में थे। जनसमूह को नित्य प्रवचन देने के उपरांत सायंकाल बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठकर विभिन्न विषयों पर वार्तालाप किया करते थे। ऐसा करने से शिष्यों का भी ज्ञानवर्धन होता था और बुद्ध को उन सभी का तुलनात्मक बौद्धिक स्तर भी ज्ञात हो जाता था।
भक्त सूरदास जी विक्रमी सम्वत सोलहवीं सदी के अंत में एक महान कवि हुए हैं, जिन्होंने श्री कृष्ण जी की भक्ति में दीवाने हो कर महाकाव्य ‘सूर-सागर’ की रचना की| आप एक निर्धन पंडित के पुत्र थे तथा 1540 विक्रमी में आपका जन्म हुआ था| ऐसा अनुमान है कि आप आगरा के निकट हुए हैं| हिन्दी साहित्य में आपका श्रेष्ठ स्थान है|
“Yudhishthira said, ‘Thou hast laid it down, O mighty one, that no trustshould be placed upon foes. But how would the king maintain himself if hewere not to trust anybody? From trust, O king, thou hast said, greatdanger arises to kings.
एक समय की बात है| पंजाब के महाराणा रणजीत सिंह अपनी राजधानी लाहौर में थे कि उन्हें उनके गुप्तचरों ने खबर दी कि कबीली लुटेरों का एक दल सरहद के सूबे के पेशावर शहर में घुस गया है और उसे लूट रहा है|
“Sanjaya said, ‘Then Duhsasana, filled with wrath, rushed againstSahadeva, causing the earth to tremble with the fierce speed of his car,O Madri’s son, however, that crusher of foes, with a broad-headed arrow,quickly cut of the head, decked with the head-gear of his rushingantagonist’s driver.