अध्याय 46
1 [ज]
अत्यद्भुतम इदं कर्म पार्थस्यामित तेजसः
धृतराष्ट्रॊ महातेजाः शरुत्वा विप्र किम अब्रवीत
1 [ज]
अत्यद्भुतम इदं कर्म पार्थस्यामित तेजसः
धृतराष्ट्रॊ महातेजाः शरुत्वा विप्र किम अब्रवीत
किसी नगर में एक सेठ रहता था| उसके पास अपार धन-संपत्ति थी, विशाल हवेली थी, नौकर-चाकर थे, सब तरह का आराम था, फिर भी उसका मन अशांत रहता था| हर घड़ी उसे कोई-न-कोई चिंता घेरे रहती थी| सेठ उदास रहता|
एक बार ढोलकवादक रमैया और उसका पुत्र कानू कांचिपुरि एक विवाह समारोह में गए| समारोह समाप्त होने पर दोनों को खूब धन आभूषण पुरस्कार स्वरुप मिले| वे खुशी-खुशी अपने घर की ओर लौट चले|
“Yudhishthira said, ‘Tell me, O learned sire that art versed in all thescriptures, of Exertion and Destiny which is the most powerful?’
“Bhishma said, ‘The Rakshasa king then caused a funeral pyre to be madefor that prince of cranes and adorned it with jewels and gems, andperfumes, and costly robes.
Sanjaya said,–“Beholding the vast Dhartarashtra army ready for battle,king Yudhisthira, the son of Kunti, gave way to grief.
पहले कांचीपुर में चोल नाम के चक्रवर्ती राजा हो गये हैं| राजा चोल के राज्य में कोई भी मनुष्य दरिद्र, दुःखी, पापी तथा रोगी नहीं था|
“Vaisampayana said, ‘Then, O thou of the Bharata race, all the greatcar-warriors of the Kurus, united together, began to assail Arjuna to thebest of their might from all sides.