Home2011August (Page 49)

एक राक्षस था| उसने एक आदमी को अपनी चाकरी में रखा आदमी बड़ा भला था, राक्षस जो भी कहता वह फौरन कर देता, लेकिन राक्षस तो राक्षस ठहरा! उसे इतने से ही संतोष न होता| वह बात-बात पर आंखें फाड़कर कहता – “काम में जरा-भी ढील हुई तो मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा|”

किसी नगर में एक आदमी रहता था| वह पढ़ा-लिखा और चतुर था| एक बार उसमें धन कमाने की लालसा पैदा हुई| उसके लिए उसने प्रयत्न आरंभ किया| देखते-देखते उसके पास लाखों की संपदा हो गई, पर उसके पास ज्यों-ज्यों पैसा आता गया, उसका लोभ बढ़ता गया| साथ ही धन का ढेर भी ऊंचा होता गया|