Home2011August (Page 35)

एक दिन वन में गुजरते हुए नारदजी ने देखा कि एक मनुष्य ध्यान में इतना मग्न है कि उसके शरीर के चारों ओर दीमक का ढेर लग गया है। नारदजी को देखकर उसने उन्हें प्रणाम किया और पूछा -प्रभु! आप कहां जा रहे हैं? नारदजी ने उत्तर दिया- मैं बैकुंठ जा रहा हूं।

“Saunaka said, ‘For what reason did that tiger among kings, the royalJanamejaya, determine to take the lives of the snakes by means of asacrifice? O Sauti, tell us in full the true story. Tell us also whyAstika, that best of regenerate ones, that foremost of ascetics, rescuedthe snakes from the blazing fire. Whose son was that monarch whocelebrated the snake-sacrifice? And whose son also was that best ofregenerate ones?’

बड़े अंगूर ही सूखकर मुनक्कों का रूप धारण कर लेते हैं| इसकी तासीर, तर व गर्म है| इसके प्रयोग से शारीरिक-क्षीणता दूर होती है, रक्त व शक्ति उत्पन्न होती है| फेफड़ों को बल मिलता है, दुर्बल रोगियों के लिए यह अमृत-तुल्य है| यह पाचन-शक्ति को बढ़ाने में अद्वितीय है| यौन-शक्ति को बढ़ाने में भी यह सहायक होते हैं| हृदय के लिए अत्यंत बलवर्धक हैं| नेत्रों की ज्योति भी इनसे बढ़ जाती है| अर्थात् इसके प्रयोग से रस, रक्त आदि धातुओं का संवर्धन होता है| निम्न उपचारों में इसका बहुत अधिक उपयोग है|