अध्याय 111
1 [लॊमष]
सा तु नाव्याश्रमं चक्रे राजकार्यार्थ सिद्धये
संदेशाच चैव नृपतेः सवबुद्ध्या चैव भारत
1 [लॊमष]
सा तु नाव्याश्रमं चक्रे राजकार्यार्थ सिद्धये
संदेशाच चैव नृपतेः सवबुद्ध्या चैव भारत
1 [र]
इहागतॊ जटिलॊ बरह्म चारी; न वै हरस्वॊ नातिदीर्घॊ मनॊ वी
सुवर्णवर्णः कमलायताक्षः; सुतः सुराणाम इव शॊभमानः
1 [भृगु]
न परनाशॊ ऽसति जीवानां दत्तस्य च कृतस्य च
याति देहान्तरं परानी शरीरं तु विशीर्यते
सालासर बालाजी या सालासर धाम भगवान् हनुमान जी के भक्तो के लिए धार्मिक महत्व की एक जगह है| यह चुरू जिले मे राजस्थान सालासर के शहर मे स्थित है| सालासर बाला जी का मंदिर विश्वास और चमत्कारों का एक शक्ति स्थल है| बालाजी की मूर्ति यहाँ भगवान् हनुमान के अन्य सभी मूर्तियों से अलग हैं| जब शाम चार बजे बाला जी की आरती होती है तो उपरी भुत प्रेतों की छाया वाले व्यक्ति झूम उठते हैं, उनके कार्य आम इन्सान जैसे ना होकर अपितु डरावने होते हैं| इसी कार्य के लिए लाखों लोग यहाँ एकत्र होते हैं|
Vaisampayana said, “The righteous-souled Yudhishthira, with an agitatedheart and burning with sorrow, began to grieve for that mightycar-warrior Karna.
एक नदी में एक मोटा-सा, हरे रंग का मेंढक रहता था| मेंढक अपनी जिंदगी से खुश और संतुष्ट था| एक बार दुर्भाग्यवश वह नदी से निकलकर, नर्म-नर्म धूप का मजा लेने के लिए किनारे पर आ बैठा| तभी एक काले कौवे ने उसे झटपट अपनी चोंच में पकड़ लिया|
“Bharadwaja said, ‘How does bodily fire or heat, entering the body,reside there? How also does the wind, obtaining space for itself, causethe body to move and exert itself?’
हिमालय की तराई में बकरियों का एक समूह चरने आया करता था| एक दिन भोजन के लिए यहाँ-वहाँ भटकते हुए एक सियार और सियारिन ने बकरे-बकरियों के समूह को घास चरते हुए देखा|