Home2011August (Page 27)

महर्षि मुद्गल प्राचीन वैदिक ऋषि थे| वे ऋग्वेद के दशम मंडल के १०२ वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि थे| गौतम पत्नी अहल्या और शतानंद इन्हीं के वंश में उत्पन्न हुए थे| महर्षि मुद्गल ऋग्वेद कि मुख्य शाखा- शाकल्यसंहिता के द्रष्टा महर्षि शाकल्य के पाँच शिष्यों में से सर्वप्रथम थे| इनकी पत्नी इंद्रसेना या मुद्गलानी कही गई है|

स्वास्थ्य के लिए इसे अमृत तुल्य माना गया है| जो लोग नियमित रूप से भोजनोपरान्त छाछ लेते हैं, वो कष्ट के चक्रव्यूह से सदैव मुक्त रहते हैं| आयुर्वेदिक चिकित्सा में कहा गया है कि भोजन के अन्त में छाछ, रात्रि के अन्त में जल और रात्रि के मध्य में दूध पीने वाला व्यक्ति सदा स्वस्थ रहता है| इसमें एक अलौकिक शक्ति विद्यमान है| कहा गया है कि धरती पर मनुष्य के लिए छाछ यानी मट्ठा एक अमृत समान है|

एक अत्यंत निर्दयी और क्रूर राजा था। दूसरों को पीड़ा देने में उसे आनंद आता था। उसका आदेश था कि उसके राज्य में एक अथवा दो आदमियों को फांसी लगनी ही चाहिए। उसके इस व्यवहार से प्रजा बहुत दुखी हो गई थी।

“Sauti said, ‘While those illustrious Brahmanas were sitting around thedead body of Pramadvara, Ruru, sorely afflicted, retired into a deep woodand wept aloud. And overwhelmed with grief he indulged in much piteouslamentation. And, remembering his beloved Pramadvara, he gave vent to hissorrow in the following words, ‘Alas! The delicate fair one thatincreaseth my affliction lieth upon the bare ground.