अध्याय 166
1 [धृ]
अधर्मेण हतं शरुत्वा धृष्टद्युम्नेन संजय
बराह्मणं पितरं वृद्धम अश्वत्थामा किम अब्रवीत
1 [धृ]
अधर्मेण हतं शरुत्वा धृष्टद्युम्नेन संजय
बराह्मणं पितरं वृद्धम अश्वत्थामा किम अब्रवीत
शामलाल बेहद संत स्वभाव और धार्मिक वृत्ति का व्यक्ति था| पेशे से वह नाई था| सामाजिक व्यवस्था में तब नाई छोटी जाति के माने जाते थे|
एक सेठ था| उसके पास बहुत संपत्ति थी| वह अपने करोबार से बहुत ही संतुष्ट था| अचानक एक दिन उसने हिसाब लगाया तो पता चला कि वह संपत्ति उसके और उसके बच्चों तक के लिए ही काफी होगी, लेकिन बच्चों के बच्चों का क्या होगा?
बहुत पहले एक छोटे-से गांव में एक एक गरीब, मगर भला ब्राह्मण रहता था| वह देवी का परम भक्त था और नित्य ही दुर्गा का नाम १०८ बार लिखे बिना अन्न-जल कुछ भी ग्रहण नहीं करता था| संपन्न परिवारों में शादी-ब्याह या फिर अंतिम संस्कार करवाना ही उसकी जीविका का एकमात्र साधन था| परंतु रोज तो गांव में ऐसा होता नहीं था|
“Vaisampayana said, ‘Hearing these words of Arjuna, O chastiser of foes,Nakula of mighty arms and a broad chest, temperate in speech andpossessed of great wisdom, with face whose colour then resembled that ofcopper, looked at the king, that foremost of all righteous persons, andspoke these words, besieging his brother’s heart (with reason).’
“Bhrigu said, ‘Truth is Brahma; Truth is Penance; it is Truth thatcreates all creatures. It is by Truth that the whole universe is upheld;and it is with the aid of Truth that one goes to heaven.
धनपुर नगर में घासीराम नाम का एक महाकंजूस रहता था| वह राजा के दरबार का खजांची था| एक दिन वह घर लौट रहा था कि रास्ते में उसने एक आदमी को पूड़े खाते हुए देखा तो उसका मन मचल गया, ‘कितने दिन हो गए, मुझे पूड़े खाएँ| आज मैं भी अपनी पत्नी से पूड़े बनवाकर खाऊँगा| लेकिन उस पर तो काफ़ी खर्चा आ जाएगा|’