अध्याय 80
1 [व]
पौरवेणाथ वयसा ययातिर नहुषात्मजः
परीतियुक्तॊ नृपश्रेष्ठश चचार विषयान परियान
1 [धृ]
भूयॊ मे पुण्डरीकाक्षं संजयाचक्ष्व पृच्छते
नाम कर्मार्थवित तात पराप्नुयां पुरुषॊत्तमम
एक चोर ने राजा के माल में चोरी की| राजा के सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने देखा उसके पदचिन्हों का पीछा किया| चोर के पदचिन्हों को देखते-देखते वे नगर से बाहर आ गये| पास में एक गांव था| उन्होंने चोर के पदचिन्ह गाँव की ओर जाते देखे| सिपाहियों ने गाँव के बाहर चक्कर लगाकर देखा कि चोर गाँव से बाहर नहीं गया, गाँव में ही है|
Sanjaya said, “Having passed the night in sound steep, those rulers ofmen, the Kauravas and the Pandavas, once more proceeded to battle.
बाद लगभग ढाई हज़ार वर्ष पहले की है| उस समय देश के कई हिस्सों में अकाल-दुर्भिक्ष की स्थिति पैदा हो गई| वर्षा न होने से सूखा पड़ गया| भूख के कारण गरीब जनता त्राहि-त्राहि कर उठी|
“Vaisampayana said. ‘Then those foremost of men divested of wrath andjealousy, and cleansed of every sin, met with one another, agreeably tothose high and auspicious ordinances that have been laid down byregenerate Rishis.
दिल्ली का एक बादशाह था| जनता के सुख-दुःख का वह सदा ख्याल रखता था| प्रजा के सुख-दुःख का ख्याल रखने के कारण ही उसे एक दिन अधिक रात बीतने पर भी नींद नहीं आई|
“Saunaka said, ‘Tell me again, in detail,–all that king Janamejaya hadasked his ministers about his father’s ascension to heaven.’
विश्वामित्र अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे। उन्हें इस बात का दुख सताता रहता था कि ऋषि वशिष्ठ उन्हें ब्रह्मार्षि नहीं मानते।
Vaisampayana continued, “Dwelling in the woods, O bull of the Bharatarace, the high-souled Pandavas spent one and ten years in a miserableplight.