अध्याय 144
1 [य]
बरूहि बराह्मण पूजायां वयुष्टिं तवं मधुसूदन
वेत्ता तवम अस्य चार्थस्य वेद तवां हि पितामहः
1 [य]
बरूहि बराह्मण पूजायां वयुष्टिं तवं मधुसूदन
वेत्ता तवम अस्य चार्थस्य वेद तवां हि पितामहः
एक बार अवंतिपुर में साधु कोटिकर्ण आए। उन दिनों उनके नाम की धूम थी। उनका सत्संग पाने दूर-दूर से लोग आते थे। उस नगर में रहने वाली कलावती भी सत्संग में जाती थी। कलावती के पास अपार संपत्ति थी। उसके रात्रि सत्संग की बात जब नगर के चोरों को मालूम हुई तो उन्होंने उसके घर सेंध लगाने की योजना बनाई।
Sanjaya said, “Beholding his brothers and the other kings engaged inbattle with Bhishma, Dhananjaya, with weapons upraised, rushed againstthe son of Ganga.
“Vaisampayana said, ‘Having got back the kingdom, king Yudhishthira ofgreat wisdom and purity, after the ceremony of installation had beenover, joining his hands together, addressed the lotus-eyed Krishna ofDasarha’s race, saying,
“Vaisampayana said, ‘Great was the uproar, at that time, O king, of bothmen and women standing on the terraces of mansions or on the Earth.
“Sauti said, ‘O foremost of Brahmanas, the gods having prepared forbattle in that way, Garuda, the king of birds, soon came upon those wiseones. And the gods beholding him of excessive strength began to quakewith fear, and strike one another with all their weapons.
प्राचीन काल में रुक्मांगद नामक एक प्रसिद्ध सार्वभौम नरेश थे| भगवान् विष्णु की आराधना ही उनका जीवन था| वे चराचर-जगत् में अपने आराध्य भगवान् हषीकेश के दर्शन करते तथा पद्मनाभ भगवान् की सेवा की भावना से ही अपने राज्य का संचालन करते थे| वे सभी प्राणियों पर क्षमा भाव रखते थे|
“Vaisampayana said, ‘Having addressed the Suta’s son in this way,Dhritarashtra, afflicted with excessive grief of heart and hopeless ofhis son’s victory, fell down on the ground.