अध्याय 81
1 [अर्जुन]
कुरूणाम अद्य सर्वेषां भवान सुहृद अनुत्तमः
संबन्धी दयितॊ नित्यम उभयॊः पक्षयॊर अपि
1 [अर्जुन]
कुरूणाम अद्य सर्वेषां भवान सुहृद अनुत्तमः
संबन्धी दयितॊ नित्यम उभयॊः पक्षयॊर अपि
Sanjaya said, “The high-souled Bhishma, deeply pierced with wordy daggersby thy son, became filled with great grief. But he said not a singledisagreeable word in reply.
‘Sauti said, ‘Hearing that Janamejaya was installed in thesnake-sacrifice, the learned Rishi Krishna-Dwaipayana went thither on theoccasion. And he, the grand-father of the Pandavas, was born in an islandof the Yamuna, of the virgin Kali by Sakti’s son, Parasara.
एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनकी इस भावना को श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए।
“Duryodhana said, ‘O Radheya, thou knowest not what hath happened.Therefore, I do not resent thy words. Thou thinkest the hostileGandharvas to have been vanquished by me with my own energy.
1 [वै]
मार्कण्डेयं महात्मानम ऊचुः पाण्डुसुतास तदा
माहात्म्यं दविजमुख्यानां शरॊतुम इच्छाम कथ्यताम
प्राचीन काल में मालव देश में एक ब्राह्मण रहता था, जो बहुत ही धर्मनिष्ठ एवं भद्र पुरुष था| उसका नाम था – यज्ञदत्त! यज्ञदत्त के दो बेटे भी थे, जिनके नाम कालेनेमी एवं विगतभय थे|
एक व्यक्ति ने कबूतर और गाय पाल रखे थे| एक दिन कबूतर गाय के पास दाना से अन्न चुगने लगा| गाय बोली, “तुम मार भोजन नहीं खा सकते| जाओ तथा कुछ और खोजो|” कबूतर को आपत्ति अच्छी नहीं लगी|