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यह उन दिनों की बात है जब शंकराचार्य 8 साल की उम्र में आश्रम में रहकर विद्याध्ययन कर रहे थे। प्रतिभा के धनी शंकराचार्य से उनके गुरु और दूसरे शिष्य अत्यंत प्रभावित थे।

एक बार एक चील एक खरहे के पीछे पड़ी थी| खरहा भ्रमर के पास भागा| भ्रमर ने चील से विनती कीकि वह खरगोश को न पकड़े| चील नहीं मानी, वह शिकार पर झपटी उसे लेकर उड़ गयी| भ्रमर उसकी रक्षा न कर सका|

प्राचीन काल की बात है, रुरु नामक एक मुनि-पुत्र था| वह सदा घूमता रहता था| एक बार वह घूमता हुआ स्थूलकेशा ऋषि के आश्रम में पहुंचा| वहां एक सुंदर युवती को देख वह उस पर आसक्त हो गया|