अध्याय 89
1 [व]
पृथाम आमन्त्र्य गॊविन्दः कृत्वा चापि परदक्षिणम
दुर्यॊधन गृहं शौरिर अभ्यगच्छद अरिंदमः
1 [व]
पृथाम आमन्त्र्य गॊविन्दः कृत्वा चापि परदक्षिणम
दुर्यॊधन गृहं शौरिर अभ्यगच्छद अरिंदमः
“Yudhishthira said, ‘These lords of earth that lie on the earth’s surfaceamid their respective hosts, these princes endued with great might, arenow reft of animation. Every one of these mighty monarchs was possessedof strength equal to that of ten thousand elephants.
Sanjaya said, “O tiger among men, Arjuna sent those Kshatriyas thatfollowed Susarman to the abode of the King of the Dead by means of hiswhetted shafts.
“Vaisampayana said, ‘It is known that the spiritual sons of Brahman werethe six great Rishis (already mentioned). There was another of the nameof Sthanu. And the sons of Sthanu, gifted with great energy, were, it isknown, eleven.
Vaisampayana said, “After that great warrior Karna had been routed by theGandharvas, the whole of the Kuru army, O monarch, fled from the field inthe very sight of Dhritarashtra’s son.
यह उन दिनों की बात है जब शंकराचार्य 8 साल की उम्र में आश्रम में रहकर विद्याध्ययन कर रहे थे। प्रतिभा के धनी शंकराचार्य से उनके गुरु और दूसरे शिष्य अत्यंत प्रभावित थे।
1 [मार्क]
ततश चॊरक्षयं कृत्वा दविजेभ्यः पृथिवीम इमाम
वाजिमेधे महायज्ञे विधिवत कल्पयिष्यति
एक बार एक चील एक खरहे के पीछे पड़ी थी| खरहा भ्रमर के पास भागा| भ्रमर ने चील से विनती कीकि वह खरगोश को न पकड़े| चील नहीं मानी, वह शिकार पर झपटी उसे लेकर उड़ गयी| भ्रमर उसकी रक्षा न कर सका|
प्राचीन काल की बात है, रुरु नामक एक मुनि-पुत्र था| वह सदा घूमता रहता था| एक बार वह घूमता हुआ स्थूलकेशा ऋषि के आश्रम में पहुंचा| वहां एक सुंदर युवती को देख वह उस पर आसक्त हो गया|