अध्याय 72
1 [स]
तथा तस्मिन परवृत्ते तु संग्रामे लॊमहर्षणे
कौरवेयांस तरिधा भूतान पाण्डवाः समुपाद्रवन
गीता के अध्ययन और श्रवण की तो बात ही क्या है, गीता को रखने मात्र का भी बड़ा माहात्म्य है! एक सिपाही था| वह रात के समय कहीं से अपने घर आ रहा था| रास्ते में उसने चन्द्रमा के प्रकाश में एक वृक्ष के नीचे एक सुन्दर स्त्री देखी| उसने उस स्त्री से बातचीत की तो उस स्त्री ने कहा-मैं आ जाऊँ क्या? सिपाही ने कहा-हाँ, आ जा|
1 [जनम]
एवं हृतायां कृष्णायां पराप्य कलेशम अनुत्तमम
अत ऊर्ध्वं नरव्याघ्राः किम अकुर्वत पाण्डवाः
1 [वैषम्पायन]
परकृतीनां तु तद वाक्यं देशकालॊपसंहितम
शरुत्वा युधिष्ठिरॊ राजाथॊत्तरं परत्यभाषत
“Yudhishthira said, ‘Tell me, O grandsire, how the high-souled Suka ofaustere penances took birth as the son of Vyasa, and how did he succeedin attaining to the highest success?
1 And Moses assembled all the congregation of the children of Israel, and said unto them, These are the words which Jehovah hath commanded, that ye should do them.
1 [आर्ज]
किंनिमित्तम अभूद वैरं विश्वामित्र वसिष्ठयॊः
वसतॊर आश्रमे पुण्ये शंस नः सर्वम एव तत