मित्र की सलाह
दुर्गादास था तो धनी किसान; किन्तु बहुत आलसी था| वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान| अपनी गाय-भैंसों की भी वह खोज-खबर नहीं रखता था| सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था|
दुर्गादास था तो धनी किसान; किन्तु बहुत आलसी था| वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान| अपनी गाय-भैंसों की भी वह खोज-खबर नहीं रखता था| सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था|
“Vaisampayana said, ‘Meanwhile the Kauravas and the Pandavas, afterhaving thus sported there, set out, without Bhima, for Hastinapura, someon horses, some on elephants, while others preferred cars and otherconveyances.
“Dhritarashtra said, ‘Excellent, O Sanat-sujata, as this thy discourseis, treating of the attainment of Brahman and the origin of the universe.I pray thee, O celebrated Rishi, to go on telling me words such as these,that are unconnected with objects of worldly desire and are, therefore,rare among men.’
एक धर्मात्मा ब्राह्मण थे, उनका नाम मांडव्य था| वे बड़े सदाचारी और तपोनिष्ठ थे| संसार के सुखों और भोगों से दूर वन में आश्रम बनाकर रहते थे| अपने आश्रम के द्वार पर बैठकर दोनों भुजाओं को ऊपर उठाकर तप करते थे| वन के कंद-मूल-फल खाते और तपमय जीवन व्यतीत करते| तप करने के कारण उनमें प्रचुर सहनशक्ति पैदा हो गई थी|
नुस्खा – अदरक, लाल चन्दन, हर्र तथा जवाखार – सबको 20-20 ग्राम की मात्रा में कूट-पीसकर चूर्ण बना लें|
महर्षि वात्सयायन का कहना है कि पुरुष को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना चाहिए| यदि व्यक्ति पूर्ण आयु तक जीवित रहना चाहता है तो उसे पौष्टिक पदार्थों और पुष्टिकारक योगों का सेवन करते रहना चाहिए| इनके उपयोग से धातु पुष्ट रहती है, मैथुन क्रिया में अपार आनंद आता है और जीवन में हर समय सुख के क्षण उपस्थित रहते हैं| तब व्यक्ति को ग्लानि, दुर्बलता, धातुक्षय, शुक्र हीनता आदि की शिकायतें कभी नहीं होतीं| यहां उपयोगी तथा शक्तिवर्द्धक नुस्खे बताए जा रहे हैं –
Vaisampayana continued, “And the powerful Bhimasena, having thus comeunder the power of the snake, thought of its mighty and wonderfulprowess; and said unto it, ‘Be thou pleased to tell me, O snake, who thouart.
ग्वारपाठे का ‘गूदा’ दवा बनाने के काम आता है| यह सफेद होता है| इसके गूदे में सचमुच हजारों औषधीय गुण भरे हैं| यह कफ-पित्त विकार को दूर करता है| भोजन पचाकर भूख बढ़ाता है| इसका अर्क कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है| इसके औषधीय गुणों की जानकारी निम्नवत् है –
एक हाथी था| वह मर गया तो धर्मराज के यहाँ पहुँचा| धर्मराज ने उससे पूछा- ‘अरे! तुझे इतना बड़ा शरीर दिया, फिर भी तू मनुष्य के वश में हो गया! तेरे एक पैर जितना था मनुष्य, उसके वश में तू हो गया!’ वह हाथी बोला-‘महाराज! यह मनुष्य ऐसा ही है|