Home2011April (Page 20)

दुर्गादास था तो धनी किसान; किन्तु बहुत आलसी था| वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान| अपनी गाय-भैंसों की भी वह खोज-खबर नहीं रखता था| सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था|

एक धर्मात्मा ब्राह्मण थे, उनका नाम मांडव्य था| वे बड़े सदाचारी और तपोनिष्ठ थे| संसार के सुखों और भोगों से दूर वन में आश्रम बनाकर रहते थे| अपने आश्रम के द्वार पर बैठकर दोनों भुजाओं को ऊपर उठाकर तप करते थे| वन के कंद-मूल-फल खाते और तपमय जीवन व्यतीत करते| तप करने के कारण उनमें प्रचुर सहनशक्ति पैदा हो गई थी|

महर्षि वात्सयायन का कहना है कि पुरुष को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना चाहिए| यदि व्यक्ति पूर्ण आयु तक जीवित रहना चाहता है तो उसे पौष्टिक पदार्थों और पुष्टिकारक योगों का सेवन करते रहना चाहिए| इनके उपयोग से धातु पुष्ट रहती है, मैथुन क्रिया में अपार आनंद आता है और जीवन में हर समय सुख के क्षण उपस्थित रहते हैं| तब व्यक्ति को ग्लानि, दुर्बलता, धातुक्षय, शुक्र हीनता आदि की शिकायतें कभी नहीं होतीं| यहां उपयोगी तथा शक्तिवर्द्धक नुस्खे बताए जा रहे हैं –

ग्वारपाठे का ‘गूदा’ दवा बनाने के काम आता है| यह सफेद होता है| इसके गूदे में सचमुच हजारों औषधीय गुण भरे हैं| यह कफ-पित्त विकार को दूर करता है| भोजन पचाकर भूख बढ़ाता है| इसका अर्क कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है| इसके औषधीय गुणों की जानकारी निम्नवत् है –

एक हाथी था| वह मर गया तो धर्मराज के यहाँ पहुँचा| धर्मराज ने उससे पूछा- ‘अरे! तुझे इतना बड़ा शरीर दिया, फिर भी तू मनुष्य के वश में हो गया! तेरे एक पैर जितना था मनुष्य, उसके वश में तू हो गया!’ वह हाथी बोला-‘महाराज! यह मनुष्य ऐसा ही है|