अध्याय 247
1 [देवदूत]
महर्षे ऽकार्यबुद्धिस तवं यः सवर्गसुखम उत्तमम
संप्राप्तं बहु मन्तव्यं विमृशस्य अबुधॊ यथा
1 [देवदूत]
महर्षे ऽकार्यबुद्धिस तवं यः सवर्गसुखम उत्तमम
संप्राप्तं बहु मन्तव्यं विमृशस्य अबुधॊ यथा
हरी नाम का प्याला हरे कृष्ण की हाला
ऐसी हाला पी पी करके, चला चले मतवाला
1 [वैषम्पायन]
शरुत्वा तु वचनं भीष्मॊ वासुदेवस्य धीमतः
किं चिद उन्नाम्य वदनं पराञ्जलिर वाक्यम अब्रवीत
‘Yajnavalkya said, Brahmanas conversant with the topics of enquiry speakof the two feet as Adhyatma, the act of walking as Adhibhuta, and Vishnuas Adhidaivatam (of those two limbs).
1 This is the book of the generations of Adam. In the day that God created man, in the likeness of God made he him;
एक जवान बाप अपने छोटे पुत्र को गोद में लिये बैठा था| कहीं से उड़कर एक कौआ उनके सामने खपरैल पर बैठा गया| पुत्र ने पिता से पूछा- ‘यह क्या है?’
“Vaisampayana continued, ‘Dhritarashtra then said, ‘O Vidura, celebratethe funeral ceremonies of that lion among kings viz., Pandu, and of Madrialso, in right royal style. For the good of their souls, distributecattle, cloths, gems and diverse kinds of wealth, every one receiving asmuch as he asketh for.
1 [वासु]
एवम उक्ते तु भीष्मेण दरॊणेन विदुरेण च
गान्धार्या धृतराष्ट्रेण न च मन्दॊ ऽनवबुध्यत
“Vaisampayana said, ‘Then the illustrious and wise king Dhritarashtra,having applauded the words spoken by Vidura, questioned Sanat-sujata insecret, desirous of obtaining the highest of all knowledge.
अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष्ण के सेवक के रूप में किया| सेवक की चिंता स्वामी की चिंता बन जाती है|